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Wednesday, February 15, 2012

खामी प्रक्रिया में या नीयत में भी

एंट्रिक्स-देवास सौदे की जांच को लेकर गठित प्रत्यूष सिन्हा समिति की रिपोर्ट में इसरो के पूर्व अध्यक्ष जी माधवन नायर सहित तीन अन्य वैज्ञानिकों को इस मामले में दोषी पाया गया है और उनके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक इसरो की शाखा एंट्रिक्स और देवास के बीच हुए समझौते में नियमों का उल्लंघन किया गया था और अपनाई गई प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं रखी गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक यह करार कई मायनों में इसरो के हितों के विपरीत था, इसके बावजूद इसे स्वीकृति दी गई। इस सौदे में भारी गड़बड़ी के आरोप लगने के बाद केंद्र सरकार ने जांच के लिए सबसे पहले पूर्व कैबिनेट सचिव बीके चतुर्वेदी तथा अंतरिक्ष आयोग के सदस्य आर नरसिम्हा की दो सदस्यीय समिति बनाई। बाद में प्रधानमंत्री ने प्रत्यूष सिन्हा की अगुवाई में एक पांच-सदस्यीय टीम का गठन किया था जिसने एंट्रिक्स और देवास के बीच हुए समझौते की बारीकियों से पड़ताल शुरू की। इसमें शक नहीं है कि एंट्रिक्स-देवास समझौते में चूक हुई है, पर भ्रष्टाचार के बजाय प्रक्रियागत गलती ज्यादा मालूम होती है। इस समझौते से किसी भी वैज्ञानिक को व्यक्तिगत लाभ नहीं हुआ है। इसकी पुष्टि चतुर्वेदीन रसिम्हा समिति ने भी की है। इस समिति ने साफ कहा है कि मामले में नीतिगत गलती हुई है, लेकिन इसमें किसी घोटाले की गुंजाइश नहीं है। इस लिहाज से तो लगता है कि जिन माधवन नायर के सिर पर भारत के चंद्रयान मिशन की सफलता का ताज था, उन्हें बेवजह फंसाने की कोशिश की गई। सरकार ने कड़ा कदम उठाते हुए नायर सहित तीन अन्य प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों पर भविष्य में किसी भी सरकारी पद के संभालने पर रोक लगा दी है। नायर के अलावा, इसरो के पूर्व वैज्ञानिक सचिव के भास्कर नारायण, एंट्रिक्स के पूर्व प्रबंध निदेशक केआरश्री धर्ममूर्ति और इसरो अंतरिक्ष केंद्र के पूर्व निदेशक केएन शंकर को इस मामले में दंडित किया गया है। हालांकि ये सभी वैज्ञानिक सेवानिवृत्त हो चुके हैं। प्रत्यूष सिन्हा समिति की रिपोर्ट आने के बाद मौजूदा इसरो प्रमुख राधाकृष्णन और माधवन नायर के बीच मतभेद भी दिखाई देने लगे हैं। माधवन इस मामले में राधाकृष्णन पर साजिश रचने का आरोप लगा रहे हैं। नायर का यह भी कहना है कि समिति की रिपोर्ट में केवल उन तथ्यों को उजागर किया गया है जिनसे उन्हें बदनाम किया जा सके। उन्होंने सौदे पर इसरो रिपोर्ट को एकतरफा बताते हुए कहा है कि यह तथ्यों को सामने नहीं लाती। लेकिन नायर-राधाकृष्णन के बीच के इस विवाद का खामियाजा बेवजह अन्य अंतरिक्ष वैज्ञानिक और इसरो, दोनों भुगत रहे हैं। इससे इसरो की कार्यपण्राली पर सवाल तो उठे ही हैं, उसकी छवि को भी गंभीर नुकसान हो रहा है। इसरो दुनिया की शीर्ष छह अंतरिक्ष एजेंसियों में शुमार है और जिस तरह इस विवाद को उठाया जा रहा है, उससे यही संदेश जा रहा है कि इसरो में पारदर्शिता का अभाव है। एंट्रिक्स, इसरो का व्यावसायिक अंग है जबकि देवास एक निजी कंपनी है। दुर्लभ एस-बैंड स्पेक्ट्रम के लिए एंट्रिक्स और देवास ने 28 जनवरी, 2005 को समझौते पर दस्तखत किया था। इस करार के बाद उसी साल देवास की साधारण शेयर पूंजी एक लाख रुपये से बढ़कर पांच लाख और शेयरधारकों की संख्या दो से बढ़कर 12 हो गई। मार्च, 2010 तक देवास के शेयरधारकों की संख्या बढ़कर 17 हो गई। देवास की शेयर पूंजी और शेयरधारकों की तादाद में बढ़ोतरी को लेकर विवाद गहराने लगा। इस बीच कैग ने भी इस करार के चलते राजस्व को करीब 2 लाख करोड़ रु पये की हानि का अनुमान लगाया। जिसके बाद यह आरोप जोर पकड़ने लगा कि एंट्रिक्स-देवास करार में गड़बड़ी हुई है। विवाद जब ज्यादा बढ़ने लगा तो सरकार ने पिछले साल इस करार को रद्द कर दिया। हालांकि कहा यह गया उक्त सौदा राष्ट्रीय सुरक्षा के चलते रद किया गया है, न कि स्पेक्ट्रम बिक्री में कथित नुकसान की वजह से। स्पष्ट संकेत है कि निशाना कहीं और लगाने की कोशिश हो रही है। गौरतलब है कि करार के अनुसार एंट्रिक्स द्वारा देवास को 70 मेगाहर्ट्ज एस-बैंड स्पेक्ट्रम मुहैया कराने थे। इस समझौते के तहत एंट्रिक्स ने 30 करोड़ डॉलर (यानी लगभग 1350 करोड़ रु पए) के बदले अपने दो सैटेलाइट्स के ट्रांसपोंडरों के 90 प्रतिशत अधिकार 12 वर्षो के लिए देवास को दे दिए थे। दिलचस्प है कि एस- बैड के और टेरेस्ट्रियल स्पेक्ट्रम के लिए अलग-अलग रकम तय होती है, लेकिन एंट्रिक्स- देवास समझौते में जिस दो लाख करोड़ रुपये की हानि की बात की जा रही है, उसकी गणना टेरेस्ट्रियल स्पेक्ट्रम की दर से की गई, जबकि उसे एस-बैंड सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के हिसाब से करनी चाहिए थी। भाजपा का कहना है कि प्रधानमंत्री इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करें। प्रधानमंत्री के पास अंतरिक्ष विभाग होने की वजह से विपक्ष प्रधानमंत्री को घेरने की फिराक में है। विपक्ष का कहना है कि सरकार को बताना चाहिए कि फैसला करने में किस प्रक्रिया का पालन किया गया और जब सौदा किया गया, उस समय अंतरिक्ष मंत्रालय का प्रभारी कौन था! हालांकि कांग्रेस का कहना है कि विपक्षी दलों को इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह कानूनी मुद्दा है। बहरहाल, अभी मामला अदालत में विचाराधीन है। फिलहाल सरकार ने इस समझौते को रद्द कर देवास को अग्रिम भुगतान लौटाने की बात कही है पर देवास इसके लिए तैयार नहीं है। वह समझौते की बहाली के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा रहा है। कानूनी प्रक्रिया का अंजाम कुछ भी हो, लेकिन इस मामले ने राष्ट्रीय संसाधनों के आवंटन के लिए स्पष्ट नीति की जरूरत को फिर जाहिर किया है।