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Monday, February 7, 2011

आज तक क्यों नहीं हो सका एलियंस से संपर्क!


वैज्ञानिकों के एक दल ने ढूंढा इसका जवाब, कहा- हमारा तरीका ही गलत
इंसान लंबे समय से एलियंस से संपर्क साधने की कोशिश में जुटा हुआ है। मगर आज तक उसे सफलता हासिल नहीं हुई। कई बार हालांकि संपर्क होने का दावा भी किया गया मगर इसके कभी स्पष्ट प्रमाण नहीं मिल सके। वैज्ञानिकों के एक दल ने अब इसी सवाल का जवाब ढूंढने का दावा किया है कि आखिर क्यों आज तक हम एलियंस से संपर्क साधने में असफल रहे हैं! उनका कहना है कि हमें उनकी तरफ से कभी कोई प्रतिक्रिया इसलिए नहीं मिली क्योंकि हमने शुरू से ही गलत रास्ता अपनाया हुआ है। मानव ने 1994 से से अंतरिक्ष में संदेश भेजने प्रारंभ कर दिए थे। पहली बार अर्सिबो रेडिया टेलीस्कोप का इस्तेमाल कर पृथ्वी से 25,000 प्रकाश वर्ष दूर स्थित तारों के समूह तक संदेश भेजा गया था। कंसास यूनिवर्सिटी के दिमित्रा एट्री, फ्रांस में इंटरनेशनल स्पेस यूनिवर्सिटी की जूलिया डीमारिनेस और पेन्सिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के जैकब हक-मिसरा ने एलियंस से संपर्क में असफलता मिलने का कारण बताया है। इस तिकड़ी का मानना है कि संपर्क के लिए किए गए ब्रॉडकास्ट बेहद जटिल होते हैं और उसकी विषय वस्तु बहुत ज्यादा होती है। साथ ही स्थापित प्रोटोकॉल की अनुपस्थिति के कारण संदेश इतने अव्यवस्थित हो जाते हैं कि इन्हें समझना अत्यंत कठिन हो सकता है। उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष के जीवों की खोज के लिए भविष्य में भेजे जाने वाले संदेशों के भावों पर ध्यान दिया जाना चाहिए, जैसे- सिग्नल एनकोडिंग, संदेश की लंबाई और सूचना की विषय वस्तु। दल ने जोड़ा कि सुधरते प्रोटोकॉल को संदेशों के जरिए दुनियाभर में इंसानों पर आजमाना होगा। शोधकर्ताओं ने बताया कि एलियंस के लिए भेजा जाने वाला कोई भी संदेश ऐसा होना चाहिए कि कम से कम उसे मानव तो समझ लें। संदेशों के लिए प्रोटोकॉल जारी कर हम इसमें सुधार ला सकते हैं और प्रभावशाली संदेशों को विकसित कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि वेबसाइटों के जरिए दुनियाभर के लोग नए संदेशों के निर्माण और इनके आदान-प्रदान करने में सक्षम होंगे। ऐसे में उन संदशों को खोजा जा सकता है जो सांस्कृतिक सीमाओं से परे होने वाली बातचीत के लिए अनुकूल हो सकते हैं।


पता चलेगा क्यों भिन्न होती है सबकी शारीरिक बनावट


लोगों की शारीरिक बनावट से लेकर रोगों के प्रति खतरे भिन्न क्यों होते है, इस तरह के तमाम सवालों के जवाब वैज्ञानिकों के लिए अभी तक पहेली ही बने रहे हैं। मगर अब वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि इनके हल मिल सकते हैं क्योंकि उन्हें इंसान के शरीर में जंपिंग जीन के प्रमाण मिल गए हैं। यह विशेष प्रकार का जीन व्यक्तियों के बीच विभिन्नता पैदा करने में अहम भूमिका निभाता है। जॉन्स हॉपकिंस विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने रेट्रोट्रांसपोजन पोलिमोर्फिस्म (रिप) के कुछ नए प्रकारों का खुलासा किया है जो कुछ व्यक्तियों में होते हैं जबकि कुछ अन्य में नहीं होते। रेट्रोट्रांसपोजन घुमक्कड़ डीएनए होते हैं जो जीनोम में एक-जगह से दूसरी जगह घूमते रहते हैं और अपनी संख्या भी बढ़ाते जाते हैं। 1000 जीनोम्स नामक एक प्रोजेक्ट से मिले 310 व्यक्तियों के जीनोम संबंधी कच्चच् आंकड़ों का वैज्ञानिकों ने इंसानी जीनोम में जीनों की मानक स्थिति से तुलना किया। शीर्ष वैज्ञानिक हेग कजाजियान ने बताया, किसी भी व्यक्ति में केवल 80 से 100 रेट्रोट्रांसपोजन ही सक्रिय तौर पर नई जगह जाकर अपनी संख्या बढ़ाते हैं। उन्होंने कहा, हम केवल इसी की खोज नहीं कर रहे कि वे कहां होते हैं या वे किनमें पाए जाते हैं बल्कि इसका भी पता लगा रहे हैं कि किस आवृत्ति के साथ वे नई जगह जाते हैं। शोधकर्ताओं ने एल1 रेट्रोट्रांसपोजन की पहचान की। शोधकर्ता दल के एक सदस्य एडम डी विंग ने बताया कि हमारे जीनोम में करीब करीब पांच लाख छितरे हुए एल1 सीक्वेंस होते हैं जो विकासपरक इतिहास के साथ साथ संचित होते जाते हैं।