एंट्रिक्स-देवास सौदे की जांच को लेकर गठित प्रत्यूष सिन्हा समिति की रिपोर्ट में इसरो के पूर्व अध्यक्ष जी माधवन नायर सहित तीन अन्य वैज्ञानिकों को इस मामले में दोषी पाया गया है और उनके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक इसरो की शाखा एंट्रिक्स और देवास के बीच हुए समझौते में नियमों का उल्लंघन किया गया था और अपनाई गई प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं रखी गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक यह करार कई मायनों में इसरो के हितों के विपरीत था, इसके बावजूद इसे स्वीकृति दी गई। इस सौदे में भारी गड़बड़ी के आरोप लगने के बाद केंद्र सरकार ने जांच के लिए सबसे पहले पूर्व कैबिनेट सचिव बीके चतुर्वेदी तथा अंतरिक्ष आयोग के सदस्य आर नरसिम्हा की दो सदस्यीय समिति बनाई। बाद में प्रधानमंत्री ने प्रत्यूष सिन्हा की अगुवाई में एक पांच-सदस्यीय टीम का गठन किया था जिसने एंट्रिक्स और देवास के बीच हुए समझौते की बारीकियों से पड़ताल शुरू की। इसमें शक नहीं है कि एंट्रिक्स-देवास समझौते में चूक हुई है, पर भ्रष्टाचार के बजाय प्रक्रियागत गलती ज्यादा मालूम होती है। इस समझौते से किसी भी वैज्ञानिक को व्यक्तिगत लाभ नहीं हुआ है। इसकी पुष्टि चतुर्वेदीन रसिम्हा समिति ने भी की है। इस समिति ने साफ कहा है कि मामले में नीतिगत गलती हुई है, लेकिन इसमें किसी घोटाले की गुंजाइश नहीं है। इस लिहाज से तो लगता है कि जिन माधवन नायर के सिर पर भारत के चंद्रयान मिशन की सफलता का ताज था, उन्हें बेवजह फंसाने की कोशिश की गई। सरकार ने कड़ा कदम उठाते हुए नायर सहित तीन अन्य प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों पर भविष्य में किसी भी सरकारी पद के संभालने पर रोक लगा दी है। नायर के अलावा, इसरो के पूर्व वैज्ञानिक सचिव के भास्कर नारायण, एंट्रिक्स के पूर्व प्रबंध निदेशक केआरश्री धर्ममूर्ति और इसरो अंतरिक्ष केंद्र के पूर्व निदेशक केएन शंकर को इस मामले में दंडित किया गया है। हालांकि ये सभी वैज्ञानिक सेवानिवृत्त हो चुके हैं। प्रत्यूष सिन्हा समिति की रिपोर्ट आने के बाद मौजूदा इसरो प्रमुख राधाकृष्णन और माधवन नायर के बीच मतभेद भी दिखाई देने लगे हैं। माधवन इस मामले में राधाकृष्णन पर साजिश रचने का आरोप लगा रहे हैं। नायर का यह भी कहना है कि समिति की रिपोर्ट में केवल उन तथ्यों को उजागर किया गया है जिनसे उन्हें बदनाम किया जा सके। उन्होंने सौदे पर इसरो रिपोर्ट को एकतरफा बताते हुए कहा है कि यह तथ्यों को सामने नहीं लाती। लेकिन नायर-राधाकृष्णन के बीच के इस विवाद का खामियाजा बेवजह अन्य अंतरिक्ष वैज्ञानिक और इसरो, दोनों भुगत रहे हैं। इससे इसरो की कार्यपण्राली पर सवाल तो उठे ही हैं, उसकी छवि को भी गंभीर नुकसान हो रहा है। इसरो दुनिया की शीर्ष छह अंतरिक्ष एजेंसियों में शुमार है और जिस तरह इस विवाद को उठाया जा रहा है, उससे यही संदेश जा रहा है कि इसरो में पारदर्शिता का अभाव है। एंट्रिक्स, इसरो का व्यावसायिक अंग है जबकि देवास एक निजी कंपनी है। दुर्लभ एस-बैंड स्पेक्ट्रम के लिए एंट्रिक्स और देवास ने 28 जनवरी, 2005 को समझौते पर दस्तखत किया था। इस करार के बाद उसी साल देवास की साधारण शेयर पूंजी एक लाख रुपये से बढ़कर पांच लाख और शेयरधारकों की संख्या दो से बढ़कर 12 हो गई। मार्च, 2010 तक देवास के शेयरधारकों की संख्या बढ़कर 17 हो गई। देवास की शेयर पूंजी और शेयरधारकों की तादाद में बढ़ोतरी को लेकर विवाद गहराने लगा। इस बीच कैग ने भी इस करार के चलते राजस्व को करीब 2 लाख करोड़ रु पये की हानि का अनुमान लगाया। जिसके बाद यह आरोप जोर पकड़ने लगा कि एंट्रिक्स-देवास करार में गड़बड़ी हुई है। विवाद जब ज्यादा बढ़ने लगा तो सरकार ने पिछले साल इस करार को रद्द कर दिया। हालांकि कहा यह गया उक्त सौदा राष्ट्रीय सुरक्षा के चलते रद किया गया है, न कि स्पेक्ट्रम बिक्री में कथित नुकसान की वजह से। स्पष्ट संकेत है कि निशाना कहीं और लगाने की कोशिश हो रही है। गौरतलब है कि करार के अनुसार एंट्रिक्स द्वारा देवास को 70 मेगाहर्ट्ज एस-बैंड स्पेक्ट्रम मुहैया कराने थे। इस समझौते के तहत एंट्रिक्स ने 30 करोड़ डॉलर (यानी लगभग 1350 करोड़ रु पए) के बदले अपने दो सैटेलाइट्स के ट्रांसपोंडरों के 90 प्रतिशत अधिकार 12 वर्षो के लिए देवास को दे दिए थे। दिलचस्प है कि एस- बैड के और टेरेस्ट्रियल स्पेक्ट्रम के लिए अलग-अलग रकम तय होती है, लेकिन एंट्रिक्स- देवास समझौते में जिस दो लाख करोड़ रुपये की हानि की बात की जा रही है, उसकी गणना टेरेस्ट्रियल स्पेक्ट्रम की दर से की गई, जबकि उसे एस-बैंड सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के हिसाब से करनी चाहिए थी। भाजपा का कहना है कि प्रधानमंत्री इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करें। प्रधानमंत्री के पास अंतरिक्ष विभाग होने की वजह से विपक्ष प्रधानमंत्री को घेरने की फिराक में है। विपक्ष का कहना है कि सरकार को बताना चाहिए कि फैसला करने में किस प्रक्रिया का पालन किया गया और जब सौदा किया गया, उस समय अंतरिक्ष मंत्रालय का प्रभारी कौन था! हालांकि कांग्रेस का कहना है कि विपक्षी दलों को इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह कानूनी मुद्दा है। बहरहाल, अभी मामला अदालत में विचाराधीन है। फिलहाल सरकार ने इस समझौते को रद्द कर देवास को अग्रिम भुगतान लौटाने की बात कही है पर देवास इसके लिए तैयार नहीं है। वह समझौते की बहाली के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा रहा है। कानूनी प्रक्रिया का अंजाम कुछ भी हो, लेकिन इस मामले ने राष्ट्रीय संसाधनों के आवंटन के लिए स्पष्ट नीति की जरूरत को फिर जाहिर किया है।
संवादसेतु-विज्ञान
Wednesday, February 15, 2012
Wednesday, July 27, 2011
अंतरिक्ष में सम्मान
कम संसाधनों और कम बजट के बावजूद भारत आज अंतरिक्ष में कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। इस साल भारत अंतरिक्ष में दो उपग्रह छोड़ चुका है। अंतरिक्ष अभियान के क्षेत्र में एक और मील का पत्थर स्थापित करते हुए भारत ने 15 जुलाई को स्वदेश निर्मित अत्याधुनिक संचार उपग्रह जीसैट-12 का श्रीहरिकोटा से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी सी-17 से प्रक्षेपण करने में सफलता हासिल की है। इस प्रक्षेपण के बाद भारत के 187 ट्रांस्पोंडर हो जाएंगे। लेकिन अभी भी हम इसरो द्वारा लक्षित 2012 तक 500 ट्रांस्पोंडरों से पीछे हैं। इसके माध्यम से डीटीएच, वी सैट परिचालन के क्षेत्र में बढ़ रही मांग को पूरा करने में मदद मिलेगी। अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में हम लगातार प्रगति कर रहे हैं, लेकिन अभी भी हम पूरी तरह से आत्मनिर्भर नहीं हो पाए हैं। गत वर्ष इसरो ने जीसैट-8 का प्रक्षेपण फ्रेंच गुयाना के अंतरिक्ष केंद्र से किया था। पर्यावरण संबधी अध्ययन के लिहाज से फ्रांस से संयुक्त उपक्रम पर विचार चल रहा है। क्रायोजेनिक तकनीकी के परिप्रेक्ष्य में पूर्ण सफलता नहीं मिलने के कारण भारत इस मामले में आत्मनिर्भर नहीं हो पाया है, जबकि प्रयोगशाला स्तर पर क्रायोजेनिक इंजन का सफलतापूर्वक परीक्षण किया जा चुका है। स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन की सहायता से लांच किए गए प्रक्षेपण यान जीएसएलवी की असफलता के बाद इस पर सवालिया निशान लगा हुआ है। भारतीय प्रक्षेपण रॉकेटों की विकास लागत विदेशी प्रक्षेपण रॉकेटों की लागत की एक-तिहाई है। भारत में इनसैट प्रणाली की क्षमता को जीसैट द्वारा मजबूत बनाया जा रहा है, जिससे दूरस्थ शिक्षा, दूरस्थ चिकित्सा ही नहीं बल्कि ग्राम संसाधन केंद्र को उन्नत बनाया जा सकेगा। जीसैट 12 को इंसैट 2 ई और इनसैट 4 ए के साथ स्थापित किया जाएगा। 2002 में कल्पना के बाद पीएसएलवी के 19 प्रक्षेपण में यह दूसरा मौका है जब संचार उपग्रह छोड़ने में इसका उपयोग किया गया है। इसरो ने इस प्रक्षेपण में उच्च क्षमता के 40 विन्यासों का उपयोग किया, जिनमें छह ठोस मोटर हैं, जो 12 टन प्रणोदक ले जा रहे हैं। इसके पहले पीएसएलवी की उड़ानों के लिए नौ टन प्रणोदक ले जाने का मानक रहा है। 2010 में जीएसएलवी के दो अभियान विफल हो गए थे। जीएसएलवी एफ 06 संचार उपग्रह जीसैट-5 पी को लेकर जाने वाले इस यान में प्रक्षेपण के महज एक मिनट बाद ही विस्फोट हो गया था और यह बंगाल की खाड़ी में गिर गया था। इसी तरह जीएसएलवी-डी 3 जीसैट-4 का अभियान भी अप्रैल 2010 में विफल हो गया था। इन विफलताओं के कारण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के आगामी कार्यक्रमों पर भले ही संदेह जताया गया हो, लेकिन इसरो के पीएसएलवी सी-16 ने 20 अप्रैल, 2011 को रिर्सोस सैट-2 एवं अन्य छोटे उपकरणों को निर्धारित कक्षाओं में ले जाकर सफलता पूर्वक स्थापित किया। रिर्सोस सैट 2 ऐसा आधुनिक सेंस्ंिाग उपग्रह है जिससे प्राकृतिक संसाधनों के अध्ययन और प्रबंधन में मदद मिलेगी। इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन ने कहा है कि भारत की अंतरिक्ष योजना भविष्य में मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन भेजने की है। लेकिन इस तरह के अभियान की सफलता सुनिश्चित करने के लिए अभी बहुत सारे परीक्षण किए जाने हैं। भारत वर्ष 2016 में नासा के चंद्र मिशन का हिस्सा बन सकता है और इसरो चंद्रमा के आगे के अध्ययन के लिए अमेरिकी जेट प्रणोदन प्रयोगशाला से साझेदारी भी कर सकता है। देश में आगामी चंद्र मिशन चंद्रयान 2 के संबंध में कार्य प्रगति पर है। चंद्रयान 2 के 2013-14 में प्रक्षेपण की संभावना है। भविष्य में अंतरिक्ष के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। कुछ साल पहले तक फ्रांस की एरियन स्पेस कंपनी की मदद से भारत अपने उपग्रह छोड़ता था। अब वह ग्राहक के बजाय साझेदारी की भूमिका पर पहुंच गया है। भारत अंतरिक्ष विज्ञान में नई सफलताएं हासिल करके विकास को गति प्रदान कर सकता है। (लेख्रक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं).
Saturday, July 16, 2011
संचार उपग्रह जीसैट का सफल प्रक्षेपण
श्रीहरिकोटा, एजेंसियां : अंतरिक्ष अभियान के क्षेत्र में एक और मील का पत्थर स्थापित करने हुए भारत ने शुक्रवार को अत्याधुनिक संचार उपग्रह जीसैट-12 का श्रीहरिकोटा से स्वदेश निर्मित घ्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी-सी17 से अंतरिक्ष में सफल प्रक्षेपण किया। उच्च क्षमता वाले 12 ट्रांसपांडर युक्त जीसैट-12 उपग्रह का जीवनकाल करीब आठ वर्ष है। पीएसएलवी के साथ इसपर करीब 200 करोड़ रुपये का खर्च आया है। उम्मीद की जा रही है कि इससे देश को ट्रांसपांडरों की कमी से निजात मिल सकेगी। करीब 53 घंटे की उल्टी गिनती के बाद शाम चार बजकर 48 मिनट पर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे प्रक्षेपण स्थल से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का राकेट पीएसएलवी आकाश के सीने को चीरता हुए आगे बढ़ा और 20 मिनट बाद ही 1,410 किलोग्राम का जीसैट-12 को कक्षा में पहुंचा दिया गया। जीसैट-12 से टेलीमेडिसिन और टेली ऐजुकेशन समेत विभिन्न संचार सेवाओं के लिए ट्रांसपांडर की उपलब्धता बढ़ाने में मदद मिलेगी। जीसैट-12 के प्रक्षेपण के बाद भारत के 175 ट्रांसपांडर हो जाएंगे लेकिन अभी भी इसरो के 2012 तक 500 ट्रांसपांडर के लक्ष्य से पीछे है जिसके माध्यम से दूरसंचार, डायरेक्ट टू होम और वी सैट परिचालन के क्षेत्र में बढ़ती मांगों को पूरा करने में मदद मिलेगी। सफल प्रक्षेपण से प्रफुल्लित नजर आ रहे इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन ने इसकी घोषणा करते हुए कहा, मुझे यह बताते हुए काफी खुशी हो रही है कि पीएसएलवी-सी17 : जीसैट 12 अभियान सफल रहा। प्रक्षेपण यान ने काफी सटीक ढंग से उपग्रह को उपयुक्त कक्षा में भेज दिया। अपने लगातार 18वें सफल अभियान में पीएसएलवी बादल भरे आसमान को चीरता हुआ आगे बढ़ा और उपग्रह के कक्षा में पहुंचने के बाद नियंत्रण कक्ष में मौजूद वैज्ञानिकों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। इसरो के अध्यक्ष राधाकृष्णन ने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जीसैट 12 के सफल प्रक्षेपण के लिए इसरो की पूरी टीम को बधाई दी है। राधाकृष्णन ने कहा कि आने वाले महीने में इसरो पीएसएलवी के कई मिशनों को आगे बढ़ाएगा और कई उपग्रहों का प्रक्षेपण करेगा। वहीं, इसरो की इस उपलब्धि पर बधाई देते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री वी. नारायणसामी ने कहा कि इससे देश को और ट्रांसपांडरों की जरूर को पूरा करने में मदद मिलेगी। जीसैट-12 को पृथ्वी के सबसे करीबी बिन्दू 284 किलोमीटर और सबसे दूर के बिन्दु 21 हजार किलोमीटर के दीर्घवृताकार स्थानांतरण कक्षा में भेजा गया है। इसी तरह, यान में लगा तरल दूरस्थ मोटर उपग्रह (एलएएमएस) को वृताकार कक्षा में स्थापित करने में उपयोग में लाया जाएगा। जीसैट का उद्देश्य इनसैट प्रणाली की क्षमता को मजबूत बनाना है ताकि दूरस्थ शिक्षा, दूरस्थ चिकित्सा और ग्राम संसाधन केंद्र को उन्नत बनाया जा सके। जीसैट 12 को इनसैट 2ई और इनसैट 4ए के साथ स्थापित किया जाएगा। साल 2002 में कल्पना के बाद पीएसएलवी के 19 प्रक्षेपण में यह दूसरा मौका है जब संचार उपग्रह छोड़ने में इसका उपयोग किया गया है। इसरो ने इस प्रक्षेपण में उच्च क्षमता के 40 विन्यासों का उपयोग किया जिसमें छह ठोस मोटर लगे हुए हैं जो 12 टन ठोस प्रणोदक ले जा रहा है। इससे पहले पीएसएलपी के उड़ानों के लिए नौ टन प्रणोदक ले जाने का मानक रहा था। जिसप्रकार के विन्यास का उपयोग जीसैट के प्रक्षेपण के लिए किया गया है, उस प्रकार के विन्यास का उपयोग साल 2008 में चंद्रयान के प्रक्षेपण के लिए किया गया था। अप्रैल और दिसंबर 2010 में जीएसएलवी की दो उड़ानों के विफल रहने के बाद इसरो ने अपने विश्वस्थ प्रक्षेपण यान पीएसएलवी को जीसैट-12 के प्रक्षेपण के लिए चुना। जीएसएलवी का प्रक्षेपण विफल रहने के कारण जीसैट 5 और जीसैट 5पी अभियान को बड़ा धक्का लगा था जिसके कारण ट्रांसपांडर की कमी आ गई थी।
Tuesday, July 12, 2011
अटलांटिस के पास कबाड़ की तलाश
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा अंतरिक्ष में मलबे के एक टुकड़े की तलाश कर रही है जिसके शटल अटलांटिस के रास्ते में आने की आशंका जताई गई है। आशंका जताई गई है कि यह टुकड़ा मंगलवार तक अटलांटिस के निकट पहुंच कर उसके लिए खतरा बन सकता है। अटलांटिस के अंतरिक्ष स्टेशन से जुड़ने के बाद इसके वहां मौजूद होने की बात सामने आई थी। नासा के शटल कार्यक्रम के उप प्रबंधक लीरॉय केन ने कहा कि इस बात की पूरी कोशिश की जाएगी कि मलबे का टुकड़ा शटल और स्टेशन से टकराने की स्थिति में न आए। केन ने कहा, हम सामान्य प्रक्रिया ही अपनाएंगे। इस मामले को सामान्य तरीके से निपटा जाएगा। अभी हमारे पास शुरुआती जानकारी है। उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष स्टेशन के रास्ते में पड़ी इस वस्तु के आकार के बारे में कोई जानकारी नहीं है, लेकिन आने वाले समय में और जानकारी आने की संभावना है। अटलांटिस नासा के शटल मिशन का आखिरी शटल है, जिसे अंतरिक्ष में भेजा गया है। अंतरिक्ष यान अटलांटिस चार अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर सफलतापूर्वक रविवार को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र पर 12 दिन के मिशन पर पहुंचा है। इस मिशन के पूरा होने के बाद नासा के अंतरिक्ष कार्यक्रम के एक युग का अंत हो जाएगा। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र के साथ अटलांटिस का 12वां मिलन न्यूजीलैंड के पूर्वी समुद्र तट से लगभग 386 किलोमीटर ऊपर दो यानों के परिभ्रमण के साथ पूरा हुआ। वहां पहले से मौजूद तीन अंतरिक्ष यात्रियों ने यान की पारम्परिक रूप से अगवानी की। अटलांटिस द्वारा अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र तक की यात्रा साल्मोनेला बैक्टीरिया द्वारा पैदा होने वाले जठरांत्र रोगों के लिए टीके विकसित करने का एक प्रयोग है। अटलांटिस अपने साथ पर्याप्त मात्रा में कल-पुर्जे भी लेकर गया है, ताकि शटल कार्यक्रम बंद होने के बाद भी अंतरिक्ष केंद्र को सक्रिय रखा जा सके। इस ऐतिहासिक मिशन का नेतृत्व अमेरिकी नौसेना के सेवानिवृत्त कैप्टन क्रिस फग्र्यूसन कर रहे हैं। वह अंतरिक्ष में अपनी तीसरी उड़ान पर हैं। उनके अलावा पायलट डौग हर्ली अपने दूसरे अंतरिक्ष मिशन पर हैं। हर्ली नौसेना के कर्नल हैं।
पृष्ठ संख्या 14, दैनिक जागरण (राष्ट्रीय संस्करण), 12 जुलाई, 2011
सौर ऊर्जा से जगमगाएंगे देश भर के स्मारक
देशभर के स्मारकों को रात के समय जगमगाने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) सौर ऊर्जा (ग्रीन एनर्जी) को बढ़ावा देगा। इस योजना को अमली जामा पहनाने के लिए एएसआई गंभीरता से विचार कर रहा था। एएसआइ के दिल्ली मंडल में इस योजना को राष्ट्रमंडल खेलों तक पूरा किया जाना था। मगर किन्हीं कारणों से योजना पिछड़ गई थी। एएसआइ के दिल्ली मंडल के अधीक्षण पुरातत्वविद् डा. के के मोहम्मद कहते हैं कि ऊर्जा बचाने और प्रदूषण रोकने के लिए ग्रीन एनर्जी बेहतर विकल्प है। पिछले कुछ माह से योजना आगे नहीं बढ़ पा रही थी। अब फिर से इसे आगे बढ़ाने के लिए गंभीरता से प्रयास किया जा रहा है। बिजली की अत्यधिक खपत और भारी भरकम बिजली के बिलों के भुगतान को देखते एएसआइ ने कुछ साल पहले स्मारकों में सौर ऊर्जा का उत्पन्न कर उसका उपयोग करने की योजना बनाई थी। प्रयोग के तौर पर सबसे पहले कुतुबमीनार में सौर ऊर्जा सिस्टम लगाए जाने की बात कही गई थी। बाद में इसे कुतुबमीनार में न लगाकर जंतर मंतर स्मारक व सफदरजंग में लगाने का फैसला लिया गया। दोनों स्मारकों में सौर ऊर्जा पैनल लगाए गए हैं और बेहतर तरीके के काम कर रहे हैं। योजना को राष्ट्रमंडल खेलों से पहले पूरा करने का लक्ष्य था। मगर विभिन्न पचड़ों के चलते योजना में देरी होती गई। उस समय कुछ पुरातत्वविदें ने सवाल उठाए थे कि इनके लगाए जाने से स्मारकों की अपनी भव्यता प्रभावित होगी। एएसआइ का कहना है कि यह बिल्कुल गलत है कि पैनल लगा दिए जाने से स्मारकों की सुंदरता या भव्यता पर कोई असर पड़ेगा। डा. के.के. मोहम्मद कहते हैं कि एएसआइ के पास तमाम जगह हैं, बड़े पार्क हैं, सौर ऊर्जा पैनल पार्को के किसी भी भाग में लगाए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि एएसआइ सरकार की इस योजना को आगे बढ़ाने के लिए कृतसंकल्प है और इसे आगे बढ़ाया जाएगा।
पृष्ठ संख्या 02, दैनिक जागरण (राष्ट्रीय संस्करण), 12 जुलाई, 2011
Wednesday, June 29, 2011
अलग तरह से बने थे सूरज और ग्रह
ग्रहों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि सूरज और सौरमंडल के ग्रहों का निर्माण अब तक की धारणाओं से अलग तरीके से हुआ होगा। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के एक दल ने सूरज और ग्रहों में ऑक्सीजन और नाइट्रोजन के मामले में उनके अलग होने का खुलासा किया है। हमारे सौर मंडल में यह दोनों गैसें प्रचुर मात्रा में हैं। नासा के 2004 जीनेसीस मिशन में प्राप्त हुए नमूनों का विश्लेषण करने वाले वैज्ञानिकों के मुताबिक यह अंतर बहुत कम है लेकिन इससे यह जानने में मदद मिल सकती है कि हमारा सौरमंडल कैसे बना था। अध्ययन दल के नेतृत्वकर्ता केविन मैककीगन ने कहा, हमने पाया कि पृथ्वी, चंद्रमा और मंगल ग्रह तथा उल्कापिंड जैसे क्षुद्रगहों के नमूनों में ओ-16 सूर्य की तुलना में कम मात्रा में है। उन्होंने कहा, आशय यह है कि हम सौर नीहारिका के उस पदार्थ को चिन्हित नहीं कर पाए जिससे सूरज बना है..यह कैसे और क्यों हुआ, इस बात का पता लगना अभी बाकी है। गौरतलब है कि पृथ्वी पर वायु ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं के योग से बना है। इनमें मौजूद न्यूट्रॅानों की संख्या के आधार पर अंतर किया जाता है। सौरमंडल में करीब 100 फीसदी ऑक्सीजन परमाणु ओ-16 से निर्मित हैं लेकिन ओ-17 और ओ-18 नाम के ऑक्सीजन आइसोटोप बहुत कम मात्रा में उपलब्ध है। नमूनों के अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि सूरज में ओ-16 की मौजूदगी का प्रतिशत पृथ्वी या अन्य ग्रहों की तुलना में थोड़ा अधिक है। अन्य आईसोटोप का प्रतिशत थोड़ा कम है। नाइट्रोजन तत्व के मामले में सूरज और ग्रहों के बीच अंतर होने का पता चला है। ऑक्सीजन की तरह नाइट्रोजन का भी एक आइसोटोप है जिसका नाम एन-14 है। इससे सौरमंडल में करीब 100 फीसदी परमाणु का निर्माण होता है लेकिन एन 15 बहुत कम मात्रा में है। इन नमूनों का अध्ययन करने वाले दल ने पाया कि पृथ्वी की तुलना में सूरज और बृहस्पति में मौजूद नाट्रोजन एन-14 से कुछ अधिक हैं लेकिन एन-15 से कुछ कम है। सूरज और बृहस्पति दोनों ही में नाइट्रोजन की समान मात्रा प्रतीत होती है। अध्ययन के मुताबिक, जहां तक ऑक्सीजन की बात है, पृथ्वी और शेष सौरमंडल नाइट्रोजन के मामले में बहुत अलग हैं.
दस नए ग्रहों का पता लगा
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों सहित एक अंतरराष्ट्रीय दल ने एक नए तारामंडल के दस नए ग्रहों की खोज की है। यह ग्रह हमारे सौर मंडल के कुछ ग्रहों से मिलते-जुलते हैं। उनमें से एक उस तारे की परिक्रमा कर रहा है जो केवल कुछ लाख साल ही पुराना है। दो नैप्चयून के आकार के ग्रह हैं जबकि एक शनि जैसा है लेकिन उससे थोड़ा छोटा है। सभी ग्रह हमारी सौर प्रणाली, एक्सोप्लेनेट्स के बाहर हैं। इन ग्रहों की खोज कोरोटी अंतरिक्ष दूरबीन से की गई है जिसका संचालन फ्रांसीसी अंतरिक्ष एजेंसी सीएनईएस करती है। ऑक्सफोर्ड में भौतिकशास्त्र की डॉ. सुजेन अग्रेन के अनुसार अगर हम ग्रहों के निर्माण की स्थिति को समझना चाहते हैं तो हमें उन्हें उनके अस्तित्व के कुछ लाख साल में ढूंढना होगा। जो ग्रह नेपच्यून की तरह हैं उनके बारे में उनका कहना है कि पहला धरती से तीन गुना बड़ा है और तारे की परिक्रमा में 5.1 दिन लेता है। दूसरा धरती से 4.8 गुना बड़ा है और 11.8 दिन परिक्रमा में लेता है। इस लिहाज से यह ग्रह आकार में नेपच्यून के आकार के हैं लेकिन उससे कहीं अधिक गर्म हैं। इतने अच्छे उपकरणों के बावजूद हम उनके द्रव्यमान की ऊपरी सतह का ही पता लगा पाए हैं। इसके बावजूद यह पता लगाने के लिए यह काफी है कि उनका घनत्व बृहस्पति से अधिक नहीं है जिसका मतलब है कि उनमें अधिकतर गैस है। उसमें काफी मात्रा में पत्थर और बर्फ भी हो सकती है।
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