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Monday, February 7, 2011

सूर्य की अति सक्रियता की आशंका से एरीज के वैज्ञानिक भी चिंतित


सावधान! 2012 में सूर्य बरपा सकता है कहर
माया सभ्यता के कलेंडर के आधार पर 2012 में पृथ्वी पर मानव जीवन की समाप्ति का दावा करने वाले दार्शनिकों की भविष्यवाणी क्या सही साबित होने जा रही है? हालांकि अभी तक इस बात का कोई वैज्ञानिक क्लू तो सामने नहीं आया है लेकिन सूर्य की गतिविधियों के अपेक्षाओं के अनुरूप घटित न होने से विश्वभर के वैज्ञानिक इस बात को लेकर जरूर चिंतित हैं कि 2012 में सूर्य की अति सक्रियता पृथ्वी पर जीवन को नष्ट नहीं तो प्रभावित अवश्य कर सकती है।
विश्व के वैज्ञानिकों के साथ ही नैनीताल के आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान एवं शोध संस्थान (एरीज) के वैज्ञानिक भी सूर्य की गतिविधियों पर नजर रखे हुए हैं। उनका निष्कर्ष है कि बीते दो वर्षों से सूर्य में अपेक्षित सक्रियता नहीं है लेकिन 2012 में सूर्य में सक्रिया बहुत अधिक बढ़ सकती है जो पृथ्वी के बाहरी वातावरण (आयोनोस्फेयर) में सौर्य वातावरण (सोलर वैदर) को प्रभावित कर सकती है। सूर्य की गतिविधियों पर सतत नजर रखे वैज्ञानिक डा. अभिषेक श्रीवास्तव ने इस संबंध में बताया कि सूर्य की चौबीसवीं सोलर साइकिल लगभग तीन साल पहले प्रारंभ हुई थी। एक साइकिल ग्यारह वर्ष की होती है। इस दौरान सूर्य पर सोलर फ्लेयर सन स्पॉट आदि गतिविधियों में उतार चढ़ाव होते रहता है। इससे पृथ्वी का वातावरण संतुलित रहता है लेकिन बीते दो वर्षों से सूर्य पर गतिविधियां बहुत ही न्यूनतम हैं तथा फ्लेयर्स और सन स्पॉट अपेक्षा से बहुत कम हैं। डा.श्रीवास्तव ने बताया कि गतिविधियों के कम होने से वैज्ञानिकों को आशंका है कि 2012 में यह गतिविधियां एकाएक बहुत बढ़कर चरम पर पहुंच सकती हैं। इससे सूर्य से होने वाला सीएमई भी बहुत बढ़ सकता है। उन्होंने बताया कि इससे पृथ्वी पर किसी नुकसान की कोई संभावनाएं अभी तक नजर नहीं आती, लेकिन आयोनोस्फेयर प्रभावित होने से सैटेलाइट्स पर इसका आंशिक प्रभाव पड़ सकता है। एरीज के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा.वहाबुद्दीन ने बताया कि मानव निर्मित सभी सैटेलाइट्स अयोनोस्फेयर में ही स्थित हैं। यदि आशंका के अनुरूप 2012 में सोलर गतिविधि बढ़ी तो वह उनपर प्रभाव पड़ सकता है। इसका असर विशेषकर दूरसंचार तथा अन्य सुविधाओं पर पड़ सकता है। हवाई सेवाएं तथा सैटेलाइट्स से संचालित होने वाली अन्य सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार यदि ऐसी स्थिति आए तो इसे पहले ही नियंत्रित कर सकने के उपाय भी फिलहाल उपलब्ध नहीं हैं जो कि वैज्ञानिकों की चिंताओं को और बढ़ा रहा है।

श्रीयंत्र से जुड़े प्राचीन विज्ञान को दस्तावेज की शक्ल


मानव सभ्यताओं और मनुष्य की गतिविधियों के उतार-चढ़ाव का आंकलन करने वाली ज्यामिति की सार्वभौमिक प्रणाली को समाहित करने वाली एंथ्रो-बायोमेट्री (मानव जीवमिती) के प्राचीन विज्ञान को एक भारतीय ने सफलतापूर्वक दस्तावेज का रूप दिया है। इसके उदाहरणों में हिंदू श्रीयंत्र भी है। वर्ष 1997 में पिरामिड के रहस्य को सुलझाने वाले चेन्नई निवासी आरकेएस मुथुकृष्णन ने एंथ्रो-बायोमेट्रीपर एक नई किताब तैयार की है। इस प्राचीन विज्ञान का प्रतिपादन दरअसल दक्षिण भारतीयों ने किया था, जिन्होंने योग से परे जाकर चमत्कारिक शक्तियों को पाने की दिशा में काम किया। नई पुस्तक का शीर्षक द इजिप्शियन कोड-ए सीक्रेट कोड ऑफ द फेरोज दैट कैन टर्न स्माल बिजनेसस इनटू अंपायर्स है जो इस प्राचीन विज्ञान की गूढ़ता को विस्तार से बयां करता है। मुथुकृष्णन ने बताया कि मिस्र के फेराओ (राजाओं) ने अपने स्वर्ण काल में इस विज्ञान का व्यापक इस्तेमाल किया। उन्होंने पिरामिड बनाने में और खासतौर पर गीजा के ग्रेट पिरामिड में इसका उपयोग किया। लेखक का कहना है कि इस ज्यामिति विज्ञान की सार्वभौमिक अवधारणा का इस्तेमाल आज भी कुछ संस्कृतियों में उनके धार्मिक चिह्नों के माध्यम से होता देखा जा सकता है। मसलन हिंदू श्रीयंत्र व यहूदी पेंटाग्राम या स्टार ऑफ डेविड आदि में। आजकल तांबे की परतों पर बनाए गए यह श्रीयंत्र मंदिरों में मूर्तियों के पास देखे जाते हैं। विजयनगर साम्राज्य के समय तेलुगू भाषी कबायली जाति कंबलथू नायकर के वंशज मुथुकृष्णन ने कहा कि कंबलथू नायकरों को तांत्रिक योद्धाओं के रूप में जाना जाता है जो विजयनगर साम्राज्य के युद्ध में इस विज्ञान के जरिए लौकिक शक्तियों के आह्वान के लिए एंथ्रो बायोमेट्री का इस्तेमाल करते थे।