वैज्ञानिकों ने एक नई लेजर सेंसिंग तकनीक विकसित करने में सफलता पाई है जिससे अब विस्फोटकों की पहचान दूर से ही की जा सकेगी। इस नई लेजर सेंसिंग तकनीक से छिपा कर रखे गए विस्फोटकों की तलाश जान को जोखिम में डाले बिना ही की जा सकेगी। प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में मैकेनिकल और एअरोस्पेस इंजनियरिंग के प्रो.रिचर्ड माइल्स ने बताया कि इस नई तकनीक की मदद से हवा में ही एक लेजर स्पंदन भेजा व वापस पाया जा सकेगा। लेजर के किरण पुंज विस्फोटकों के अणुओं से प्रतिक्रिया करते हैं और उनके फिंगर प्रिंट ले लेते हैं। इससे छिपे विस्फोटकों की खोज सरलता से हो सकेगी। जर्नल साइंस रिपोर्ट के मुताबिक यह नई एअर लेजर तकनीक पुराने रिमोट मेजरमेंट आधारित तकनीक से अधिक ताकतवर औजार साबित होगी। प्रो. माइल्स प्रिंसटन और टैक्सास यूनिवर्सिटी द्वारा संचालित इस शोध के शीर्ष शोधकर्ता थे।
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Thursday, February 3, 2011
भूकंप की सटीक तीव्रता बताएगा नया मानचित्र
द इंस्टीट्यूट ऑफ सिस्मोलॉजिकल रिसर्च (आइएसआर) ने देश के भूकंप संभावित इलाकों का नया मानचित्र तैयार किया है। इसमें भूकंप संवेदी क्षेत्रों को ज्यादा बारीकी से रेखांकित किया गया है। यह मानचित्र भूकंप की आशंका और उसकी तीव्रता के बारे में पहले ही सटीक जानकारी प्रदान करता है। आइएसआर के निदेशक जर्नल बी.के. रस्तोगी ने कहा, भूकंप के बारे में जानकारी देने वाला ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड (बीआइएस) का मौजूदा नक्शा भारत को चार जोन में बांटता है। मगर करीब दो साल के शोध के बाद तैयार किया गया हमारा नक्शा अधिक उपयोगी है। यह भूकंप के आने वाले क्षेत्र के बारे में सटीक जानकारी देने के साथ उसकी तीव्रता के बारे में भी बताता है। रस्तोगी ने बताया, यह नक्शा घरेलू निर्माण के साथ परमाणु बिजली संयंत्र, बांध और उद्योगों को लगाने से पहले आवश्यक जानकारी मुहैया कराने में काफी मदद करेगा। बीआइएस के पास जो भूकंप जोन का नक्शा है उसमें सबसे खतरनाक जोन हिमालय की भ्रंश लाइन से बाहर है। गुजरात का कच्छ इलाका भी इस जोन में आता है जबकि देश के अन्य हिस्से को तीन जोनों में बांटा गया है। महानिदेशक ने कहा कि ब्यूरो पिछले 13 वर्षो से नए नक्शे को बनाने का प्रयास कर रहा है। अंतत: उन्होंने तीन वर्ष पहले हमसे कहा और हमने दो साल की कड़ी मेहनत के बाद जोन के नक्शे को बना दिया। इसके लिए हमने भारत के अंदर और आसपास के इलाको में आए 35 हजार भूकंपों के आंकड़ों का अध्ययन किया।
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