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Sunday, January 16, 2011
इसरो, डीआरडीओ से जल्द प्रतिबंध हटाएगा अमेरिका
अमेरिकी अधिकारियों ने राष्ट्रपति बराक ओबामा की ओर से नई दिल्ली में किए गए एलान पर अमल करते हुए भारत के दो प्रमुख प्रतिष्ठानों भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) को जल्द ही प्रतिबंधित सूची से हटाने की तैयारी कर ली है। इस संबंध में अधिसूचना जारी करने की तैयारी की जा रही है। अधिकारियों ने बताया कि अमेरिकी वाणिज्य विभाग की ओर से औपचारिक अधिसूचना जारी करने की प्रक्रि या आखिरी चरण में है। वाणिज्य विभाग के उद्योग एवं सुरक्षा मामलों के उप मंत्री एरिक हिर्सचॉर्न ने बताया, ‘‘प्रतिबंध हटने के बाद परस्पर निर्यात नियंतण्रनीतियों में बदलाव शुरू होगा।’’ एरिक ने प्रतिबंधों को हटाने की कोई समय सीमा नहीं बताई। आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि इस संबंध में औपचारिक अधिसूचना वाणिज्य मंत्री गैरी लॉक के भारत दौरे से पहले जारी की जा सकती है। लॉक छह से 11 फरवरी तक भारत की आधिकारिक यात्रा पर होंगे। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘‘वाणिज्य मंत्रालय जल्द एक अधिसूचना जारी करने पर काम कर रहा है, जिससे भारत पर लगे अंतरिक्ष और रक्षा संबंधी प्रतिबंध हट जाएंगे। आपको पता है कि राष्ट्रपति बराक ओबामा ने बीते साल दिल्ली में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ मुलाकात के दौरान इस बारे में ऐलान किया था।’’ वर्ष 1998 में भारत के परमाणु परीक्षण किए जाने के बाद अमेरिका ने इसरो व डीआरडीओ पर प्रतिबंध लगा दिए गए थे। भारत प्रतिबंध को खत्म कराने की कोशिशों में लबे समय से जुटा था। पिछले साल नवंबर में अपने भारत प्रवास के दौरान ओबामा ने इन दोनों प्रतिष्ठानों से प्रतिबंध हटाने का एलान किया था।
चार साल में फिर जिंदा होगा ऊनी मैमथ
लंदन, क्लोनिंग तकनीक में मिली एक उल्लेखनीय सफलता के बाद वैज्ञानिकों ने 5000 साल से अधिक समय पहले विलुप्त हुए ऊनी मैमथ का क्लोन चार साल के भीतर तैयार करने की उम्मीद जताई है। इससे पहले वैज्ञानिकों की यह कोशिश विफल रही थी क्योंकि वे साइबेरिया में पाई गई मैमथ की खाल और मांसपेशियों के ऊतकों की कोशिकाओं की केंद्रिका (न्यूक्लेई) हासिल नहीं कर पाए। इसलिए कि वह अत्यधिक ठंड के कारण नष्ट हो गई थी। रिकेन सेंटर फॉर डवेलपमेंट बायोलॉजी के तेरूचिको वाकायामा ने हाल में एक तकनीक विकसित की है। उससे 16 साल से बर्फ में दबे एक चूहे की कोशिकाओं से एक चूहे को क्लोन किया गया। इस सफलता के बाद जापान में क्योटो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अकीरा इरितानी अब ऊनी मैमथ को पुर्नजीवित करने का अभियान फिर से शुरू कर रहे हैं। उन्होंने डेली टेलीग्राफ को बताया, अब तकनीकी समस्या का हल ढूंढ लिया गया है। अब हमें बर्फ में दबे मैमथ के नरम ऊतक की जरूरत है। अकीरा अब मैमथ की स्वस्थ कोशिका निकालने से पहले इसकी केंद्रिका की पहचान के लिए वाकायामा की तकनीक का इस्तेमाल करना चाहते हैं। इसके बाद केंद्रिका को अफ्रीकी हथिनी के अंडे में प्रष्विट कराया जाएगा। एक तरह से यह हथिनी मैमथ के लिए सरोगेट मदर का काम करेगी। प्रोफेसर अकीरी ने कहा कि उनका अनुमान है कि हथिनी के गर्भाधान से पूर्व दो साल की जरूरत होगी। इसके बाद करीब 600 दिन गर्भावस्था के लगेंगे। वह इस साल गर्मियों में मैमथ के जीवाश्मों की खोज में साइबेरिया जाने की योजना बना रहे हैं। यहां से वह उसकी त्वचा या ऊतकों का नमूना हासिल करेंगे जो 3 वर्ग सेमी. तक छोटा हो सकता है।
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