Thursday, December 23, 2010
अल्जाइमर पर काबू पाने की कोशिश
अल्जाइमर यानी याददाश्त खोने वाली बीमारी आज एक दुसाध्य बीमारी के रूप में जगह चुकी है। खासकर महानगरों में इसका प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है। यही कारण है कि इस पर काबू पाने के लिए लगातार शोध हो रहे हैं। इसकी एक उम्मीद है नैनो बोट मशीन। यह मशीन मनुष्य की धमनी के भीतर फिट की जाएगी जो उसकी याददाश्त को तरोताजा करती रहेगी। नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस के ऑनलाइन एडीशन में दी गई जानकारी के अनुसार मिशिगन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक उक्त मशीन को बनाने में सफल माने जा रहे हैं। विश्वविद्यालय के ऐसोसिएट प्रॉफेसर मेहमेत फतिह यानिक अपने सहयोगियों के साथ इस तकनीक पर काम कर रहे हैं। एक सव्रेक्षण के अनुसार दुनिया में 2006 में दो करोड़ साठ लाख लोग अल्जाइमर की चपेट में थे और आज यह संख्या सात करोड़ अस्सी लाख के करीब पहुंच गई है। अकेले अमेरिका में 53 लाख लोग अपनी याददाश्त खो चुके हैं। यदि समय रहते इसका माकूल इलाज नहीं ढूंढा गया तो इस संख्या में दिन-ब-दिन इजाफा होता रहेगा। इस बीमारी का प्रभाव प्रॉढ़ व्यक्तियों पर ज्यादा होता है। उम्र बढ़ने के साथ दिमाग अपनी स्मरण शक्ति पर नियंत्रण रखने में अक्षम होता जाता है जिसका विशेष कारण होता है दिमागी कसरत न करने की आदत। जो लोग लगातार दिमाग पर जोर देकर काम करते रहते हैं उनके दिमाग की कसरत होती रहती है। यानी वे दिमागी तौर पर स्वस्थ रहते हैं। दिमाग की निष्क्रियता के चलते ही अल्जाइमर धर दबोचता है। अत: दिमागी मशीन का इस्तेमाल लगातार करते रहना चाहिए। वैसे यह बीमारी किसी भी उम्र में व्यक्ति को शिकार बना सकती है लेकिन बुढ़ापे की ओर अग्रसर व्यक्ति को इसका विशेष खयाल रखने की आवश्यकता है। हाल में वैज्ञानिकों ने हवाई यात्रा करने के बाद 24 घंटे तक याददाश्त खोने जैसी समस्या का जिक्र भी किया है। यानी अधिक हवाई यात्रा करने से व्यक्ति लंबी अवधि तक इस बीमारी का शिकार हो सकता है। इसी को ध्यान में रख कर वैज्ञानिकों ने नैनो बोट मशीन का ईजाद किया है जो मानव की धमनी में फिट होकर उसकी याददाश्त को सक्रिय रखने का काम करेगी। हालांकि अभी इसे आम आदमी तक पहुंचने में समय लगेगा। अनुमान है कि कम से कम दो दशक बाद ही यह उपलब्ध हो पायेगी। इस तकनीक के सफल होने के बाद मेडिकल सांइस में बहुत से आविष्कारों की संभावनाएं बलवती हुई हैं। जैसे हड्डियों में कैल्शियम की कमी से होनेवाले आर्थराइटिस के उपचार या दुर्घटना के कारण क्षतिग्रस्त हो चुके अंगों को सही करने में भी मदद मिलेगी और तंत्रिका तंत्र की बीमारियों को भी ठीक किया जा सकेगा। इसी प्रकार मनोचिकित्सा के क्षेत्र में भी नैनो बोट कंप्यूटर बहुत सहायक सिद्ध हो सकते हैं। याददाश्त लौटाने से बुढ़ापे पर भी काबू पाया जा सकेगा। यदि सही में वैज्ञानिकों को इस तकनीक में सफलता मिलती है तो इसके बगैर मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकेगी। लेकिन ‘अति सर्वत्रं वर्जयेत’ की उक्ति को ध्यान में रखते हुए एक लक्ष्मण रेखा अवश्य खींचनी होगी और तय करना होगा कि उसे पार करना ठीक नहीं। भविष्य की इस तकनीक से न केवल गंभीर नैतिक मूल्यों के मुद्दे उठेंगे, बल्कि सुरक्षा से संबंधित मामले भी खतरे में पड़ जाएंगे। तीव्र तकनीक विकास से मनुष्य पूरी तरह तकनीकी आश्रित हो जाएगा। यह भी संभव है कि हमारे जीवन में तकनीक का अधिक हस्तक्षेप होने से हम रोबोट की तरह हो जाएं। वैज्ञानिक भी मानते रहे हैं कि कुछ नया सीखने के लिए मनुष्य को भूलना भी आवश्यक है। यांत्रिकी से हम पूरे जीवन की यादों को भंडारित कर निजी जीवन में भारी हस्तक्षेप करेंगे। बदलती जीवन शैली इस बीमारी का प्रमुख कारण माना जा सकता है। कंप्यूटर युग में हम सारा काम मशीन के माध्यम से करने के आदी हो गए हैं। छोटी-बड़ी किसी भी खरीदारी का हिसाब जोड़ने से लेकर समय और दिन तक पता करने के लिए हम यंत्रों पर आश्रित हैं। बड़ी-बड़ी गणनाओं के लिए तो कंप्यूटर या कैलकुलेटर जैसी मशीनें ठीक हैं पर सामान्य गणनाओं के लिए जहां तक हो सके, दिमागी मशीन का ही उपयोग किया जाना चाहिए। तभी हम अल्जाइमर जैसी बीमारी से बच सकते हैं। याददाश्त जिंदा रखने के लिए शरीर में मशीन फिट करने की नौबत न आए सबसे पहले यही कोशिश होनी चाहिए। प्रॉकृतिक उपचार के जरिए ही याददाश्त को लंबे समय तक जिंदा रखने का य8 होना चाहिए और इसके लिए बचपन से ही प्रयासरत रहना चाहिए। माता-पिता और अध्यापकों द्वारा बच्चों के सीखने-सिखाने की पद्धति में परिवर्तन करना होगा। बच्चों से लगातार बिना किसी मशीन के जरिये गणित का अभ्यास करवाया जाना चाहिए। हम जितनी अधिक भाषायें बोलेंगे उतनी ही अधिक दिमागी कसरत होगी और अल्जाइमर जैसी बीमारी से दूर रहेंगे। भले ही नैनो तकनीक अपना काम करती रहे लेकिन दिमागी मशीन की सक्रियता बराबर बनी रहनी जरूरी है।
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