वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका की गहराई में दुनिया की पहली विस्मयकारी वेधशाला तैयार करने में सफलता पाई
वैज्ञानिकों ने दुनिया की पहली ऐसी विस्मयकारी वेधशाला (ऑब्जरवेटरी) तैयार करने में सफलता हासिल कर ली है जिससे अंतरिक्ष के कई गूढ़ रहस्यों का पता चल सकता है। आइसक्यूब न्यूट्रिनो नामक यह वेधशाला अंटार्कटिका में बनाई गई है। दक्षिणी धु्रव पर बना यह एक ऐसा भीमकाय टेलीस्कोप है जिसे न्यूट्रिनो नाम के सबएटोमिक अणुओं को पहचानने के लिए डिजाइन किया गया है। न्यूट्रिनो प्रकाश की गति से धरती से होते हुए गुजरते रहते हैं। टेलीस्कोप का निर्माण पिछले सप्ताह खत्म हो चुका है हालांकि इस दौरान पिछले कुछ सालों से यह लगातार आंकड़े एकत्रित कर रहा था। न्यूट्रिनों के बारे में अभी तक वैज्ञानिकों को काफी कम जानकारी मिल सकी है। ऐसा माना जाता है कि इनमें हमारी आकाशगंगा के जन्म और ब्लैक होल के रहस्य समय कई गूढ़ राज छुप हुए हैं। भौतिकविदें का मानना है कि न्यूट्रिनो का जन्म बेहद प्रचंड कॉस्मिक घटनाओं जैसे- आकाशगंगाओं या फासले पर मौजूद ब्लैक होलों के टकराव दौरान हुआ। ये घटनाएं ब्रह्मांड के एकदम छोर पर घटी होंगी। न्यूट्रिनो किसी चुंबकीय क्षेत्र या परमाणुओं द्वारा बिना भटके या अवशोषित हुए लाखों प्रकाश वर्ष की यात्रा करने की क्षमता रखते हैं। बेहद उच्च ऊर्जा वाले ये रहस्यमयी अणु ब्रह्मांड के सबसे महत्वपूर्ण सवालों के जवाब उपलब्ध करा सकते हैं। मगर सबसे पहले इन्हें ढूंढने की चुनौती है। इसीलिए वैज्ञानिकों ने इन पर नजर रखने के लिए बर्फ वाले स्थान का इस्तेमाल किया है। वैज्ञानिक नवनिर्मित टेलीस्कोप के जरिए न्यूट्रिनो के टकराव से बनने वाले बर्फ के अतिसूक्ष्म कणों के दुर्लभ मौके को देखने की कोशिश करेंगे। इस विशालकाय टेलीस्कोप की औसत गहराई 8,000 फुट है। इस पूरी परियोजना पर 279 मिलियन डॉलर (करीब 12.5 अरब रुपये) का खर्च आया है। इनमें से नेशनल साइंस फाउंडेशन ने 242 मिलियन डॉलर (करीब 10.8 अरब रुपये) का योगदान दिया है। वेधशाला निर्माण के अंतिम चरण में 5,160 ऑप्टिकल सेंसरों को फिट करने के लिए 86 छेद किए गए। मुख्य डिटेक्टर बनाने के लिए अब इन सेंसरों को फिट किया जा चुका है। न्यूट्रिनो और परमाणु की टक्कर से जिस अणु का निर्माण होता है उसे म्यूऑन कहा जाता है। चेरेनकोव रेडिएशन नाम नीली रोशनी की चमक में ये अणु दिखाई देते हैं। अंटार्कटिक बर्फ की अत्यंत पारदर्शी परत में आइसक्यूब के ऑप्टिकल सेंसर इस नीली रोशनी की पहचान करेंगे। सबएटोमिक टक्कर के परिणामस्वरूप बनी निशानी से वैज्ञानिक आने वाले न्यूट्रिनो की दिशा का पता लगा सकते हैं और इसकी उत्पत्ति के बिंदू तक पहुँच सकते हैं.
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