यह कोई माया कलेंडर की भविष्यवाणी नहीं है, बल्कि ब्रह्मांड वैज्ञानिकों की चेतावनी है कि वर्ष 2012 में भयंकर सौर तूफान के धरती से टकराने के कारण भारी धन और जन की क्षति हो सकती है। पिछले वर्ष अमेरिकी खगोलविदों ने 2012 में धरती से सौर तूफान के टकराने की भविष्यवाणी की थी। अब उनका आकलन है कि अभी तक इसे जितना ताकतवर समझा जा रहा था, यह उससे कहीं अधिक ज्यादा होगा। पृथ्वी से यह दस करोड़ हाइड्रोजन बमों की शक्ति से टकराएगा। इस साल के शुरुआत में इसी तूफान के चलते अंतरिक्ष में अद्भुत रोशनियां दिखाई दी थी। नासा ने चेतावनी दी है कि जो चकाचौंध उन्होंने देखी है, वह अंतरिक्ष में बन रहे भीषण सौर तूफान का एक संकेत मात्र है। इस सौर तूफान में इतनी शक्ति होगी कि यह पूरी धरती की विद्युत व्यवस्था को ठप कर देगा। इस बात के खंडन के बावजूद नासा 2006 से इस तूफान पर नजर रख रहा है। पिछले माह आई नासा की रिपोर्ट में यह दावा किया गया था कि यह तूफान 2012 में धरती से टकरा सकता है। 1859 और 1921 में भी इसी तरह के तूफान ने दुनिया भर में हलचल मचा दी थी और बड़े पैमाने पर टेलीग्राफ तारों के क्षतिग्रस्त होने का कारण बना था। 2012 में आने वाले सौर तूफान के इससे भी ज्यादा विध्वंसक होने की आशंका जताई गई है। खगोल विज्ञान के प्रोफेसर डेव रेनेक ने इस बारे में कहा, सौर खगोलविदों के बीच आम राय यह है कि आने वाला यह सौर तूफान (2012 या 2013 तक आने की आशंका) पिछले 100 सालों में सबसे ज्यादा अशांति लाने वाला सिद्ध होगा। सूर्य अब अपनी सुसुप्त अवस्था से धीरे-धीरे जाग रहा है। उसके पूरी तरह से जागने पर भयंकर सौर लपटें उठेंगी, जो तूफान बनकर धरती पर भयंकर तबाही मचाएंगी। यह तूफान सभी कृत्रिम उपग्रहों को नष्ट कर देगा, जिससे पूरी संचार व्यवस्था और हवाई सेवाएं ठप हो जाएंगी। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने वाशिंगटन में अमेरिकन एसोसिएट फॉर द एडवांसमेंट ऑफ साइंस की सालाना बैठक में इस मुद्दे पर विस्तृत विचार विमर्श किया है। इससे पहले 1972 में भी सोलर तूफान आया था, जिसने अमेरिका के इलिनॉयस में टेलीफोन संचार व्यवस्था में गड़बड़ी पैदा की थी। कनाडा के क्यूबेक में 1989 में इस वजह से पूरे शहर की बिजली गुल हो गई थी। इन दोनों ही घटनाओं का असर सीमित स्थान पर दिखा था। पर 2012-13 में आने वाले सोलर तूफान पूरी दुनिया को चपेट में ले सकता है। नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार अगले तीन वर्षो के दौरान उसकी सतह पर उठने वाली सौर लपटों का प्रभाव हमारी धरती पर भी पड़ेगा। इसकी शुरुआत 1 अगस्त 2010 से हो चुकी है और यह सौर सक्रियता 2013-14 तक जारी रहेगी। इस वर्ष की 14 फरवरी की रात में सूरज की सतह पर हुए विस्फोट से चीन का रेडियो संचार बाधित हो गया था। हालांकि यह पिछले विस्फोटों के मुकाबले बहुत छोटा था। पर 2013-14 तक सूरज की सतह पर कई विस्फोट होंगे, जिससे पूरी धरती की जलवायु और मौसम भी बदल सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले दिनों में हमारी धरती बड़े सौर तूफानों से निकली तरंगों से प्रभावित हो सकती है। सूर्य के कोरोना से निकलने वाली अस्वाभाविक चुंबकीय लपटों से विद्युत आवेशित बादल हमारी पृथ्वी की ओर बढ़ने लगे हंै। वैज्ञानिकों ने धरती पर सौर-सुनामी आने की चेतावनी दी है। नासा के सोलर डायनोमिक्स आब्जर्वेटरी (एसडीओ) सहित कई उपग्रहों ने 1 अगस्त 2010 को सूर्य के सन-स्पाट 1092 से छोटी सौर लपटें रिकार्ड की हैं, जो आकार में पृथ्वी के बराबर हैं। उपग्रहों ने ठंडी गैसों के बड़े-बड़े तंतु भी रिकॉर्ड किए हैं, जो सूर्य के उत्तरी गोलार्द्ध में फैले हुए हैं। अंतरिक्ष में इसमें धमाका भी हुआ है। न्यू साइंटिस्ट ने खबर दी है कि यह सूर्य के कोरोना का हिस्सा है। इस धमाके को कोरोनल विस्फोट कहा जा रहा है। यह अविश्वसनीय रूप से नौ करोड़ 30 लाख मील तक फैल चुकी है। यह सौर सुनामी पृथ्वी की ओर बहुत तेजी से बढ़ रही है। इसमें कहा गया है कि जब ये उच्छृंखल बादल टकराएंगे तो वे कभी भी धु्रव के ऊपर आकाश में तेज रोशनी उत्पन्न कर सकते हैं और ये उपग्रहों के लिए खतरा उत्पन्न कर सकते हैं। हालांकि गंभीर रूप से खतरा नहीं है, लेकिन सूर्य की सतह पर जब कोई बड़ी सौर लपट उठेगी तो उसका प्रभाव धरती पर पड़ सकता है। सूरज की सतह पर उठने वाली विशाल सौर लपटें या ज्वालाएं हमारी धरती के वातावरण को भी प्रभावित करेंगी। नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार, अगले तीन वर्षो में सौर गतिविधियां इतनी बढ़ जाएंगी कि हम धरतीवासियों के लिए विनाशकारी साबित होंगी। अभी से इस प्राकृतिक आपदा की काट खोजी जाने लगी है। पिछले सप्ताह दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने इन विनाशकारी लपटों से धरती को बचाने के लिए वाशिंगटन में आयोजित अंतरिक्ष सम्मेलन में विचार-विमर्श किया है। इस समस्या के आकलन के लिए नासा सोलर डायनामिक्स आब्जरवेटरी सहित दर्जनों उपग्रहों का प्रयोग कर रहा है। दो साल पहले नेशनल अकेडमी ऑफ साइंसेज द्वारा इस समस्या का गंभीरता से अध्ययन किया गया। इस रिपोर्ट में पहली बार इसके सामाजिक और आर्थिक प्रभावों का उल्लेख किया गया था। नासा के अनुसार, हर 22 साल बाद सूरज की चुंबकीय ऊर्जा का चक्र शीर्ष पर होता है। इसके साथ ही हर 11 साल की अवधि में इससे निकलने वाली लपटों की संख्या सर्वाधिक होती है। सूरज के इन दोनों विनाशकारी अवगुणों वाली अवधि साल 2013 में एक साथ मिल रही है। इससे सूरज से सबसे ज्यादा विकिरण हो सकता है। इससे निकलने वाली लपटों और चुंबकीय ऊर्जा में तेजी से वृद्धि हो सकती है। यह धरतीवासियों के लिए खतरनाक होगा। सौर ज्वालाओं से फूटने वाला यह विकिरण वैज्ञानिक भाषा में विद्युत चुंबकीय ऊर्जा के नाम से जाना जाता है। इसमें वे तमाम किरणें समाई रहती हैं, जिन्हें हम आमतौर पर गामा किरणें, एक्स किरणें, पराबैंगनी किरणें आदि नामों से पुकारते हैं। सूरज से आने वाली समस्त ऊर्जा इन्हीं विकिरणों के रूप में वायु में धरती तक पहुंचती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, इन सौर लपटों की शक्ति सैकड़ों हाइड्रोजन बमों के बराबर होती है। इसकी विद्युत चुंबकीय शक्ति हमारी दूरसंचार प्रणाली, विद्युत आपूर्ति व्यवस्था और अंतरिक्ष में घूमते उपग्रहों को ठप कर सकती है। हाईटेक तकनीकों पर इसका गहरा असर पड़ सकता है। पिछली बार 12 जुलाई 2000 में जब सौर लपटें उठीं थी तो अंतरिक्ष में चक्कर लगाते कृत्रिम उपग्रहों में अचानक गड़बड़ी पैदा हो गई। रेडियो संदेशों के आदान-प्रदान का सिलसिला कुछ समय के लिए ठप पड़ गया। इस लपट के साथ खरबों टन सौर सामग्री भी धरती की ओर चल पड़ी। इसका धरती के मौसम और वातावरण पर प्रभाव पड़ा, परंतु किसी जान-माल की क्षति नहीं हुई।
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