Wednesday, December 29, 2010

कैंसर से जूझ रही महिलाएं भी अब बन सकेंगी मां

नई तकनीक ने जगाई उम्मीद की किरण, महिलाओं की बांह में बनेंगे अंडाणु
तीन से चार माह लगते हैं पूरी प्रकिया में
डॉक्टर महिला की बांह के अगले हिस्से की त्वचा के नीचे अंडाशय के ऊतक इंप्लांट करेंगे। यदि कुछ दिन बाद ट्रांसप्लांट वाली जगह पर मटर के दाने जैसा उभार दिखता है तो डॉक्टर समझ जाएंगे कि अंडाशय के ऊतकों में अंडाणु बन चुके हैं। इन ऊतकों से अंडाणु को अलग कर आईवीएफ तकनीक के जरिए महिला गर्भधारण कर सकती है। इस प्रक्रिया में तीन से चार महीने लग सकते हैं।
7-8 बच्चों ने जन्म लिया अब तक इस तकनीक से विभिन्न देशों में

कैंसर के इलाज के चलते सैकड़ों महिलाएं हर साल बांझपन का शिकार हो जाती हैं
नई दिल्ली। बेऔलाद दंपतियों के लिए एक नई तकनीक उम्मीद लेकर आई है। खास तौर से कैंसर या अन्य बीमारियों के चलते नि:संतान मां-बाप की गोद इस तकनीक से भर सकेगी। भारत में पहली बार इस्तेमाल होने जा रही इस विधि में महिलाएं अपनी बांह में अंडाणु पैदा कर सकेंगी।
सेना के रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल में डॉक्टरों ने कैंसर की मरीज महिलाओं के अंडाशय (ओवरी) के ऊतक संरक्षित कर लिए हैं। जब इन महिलाओं की बच्चे पैदा करने की चाहत होगी तो ये डॉक्टर उनकी बांह के अगले हिस्से या पेट में ये ऊतक इंप्लांट कर देंगे। इन महिलाओं को ऐसी दवाएं दी जाएंगी, जिससे इन ऊतकों में अंडाणु बन सकें। अस्पताल के कमांडेंट लेफ्टिनेंट जनरल नरेश कुमार ने कहा कि पहली बार हम जनवरी में एक महिला की बांह की त्वचा के नीचे अंडाशय के यह संरक्षित ऊतक डालने जा रहे हैं। यह महिला फिलहाल मां बन पाने में सक्षम नहीं है, लेकिन इस तकनीक से अंडाणु पैदा करने के बाद वह आने वाले दिनों में मां बने सकेगी। उन्होंने यह भी कहा कि भारत में इस तरह का ट्रांसप्लांट पहली बार हो रहा है। अब वह महिला पूरी तरह से कैंसर रोग से मुक्त हो चुकी है।
अस्पताल में आईवीएफ विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट कर्नल पंकज तलवार ने कहा कि कैंसर के इलाज से बड़ी संख्या में महिलाएं और पुरुष बांझपन और नपुंसकता से पीड़ित हो जाते हैं। महिलाओं के मामले में उनका कैंसर का इलाज करने से पहले हम उनके अंडाशय के ऊतकों को लैब में संरक्षित कर लेते हैं। हम इसकी जांच भी करते हैं कि कहीं इसमें कैंसर कोशिकाएं न हों। 

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