Wednesday, July 27, 2011

अंतरिक्ष में सम्मान


कम संसाधनों और कम बजट के बावजूद भारत आज अंतरिक्ष में कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। इस साल भारत अंतरिक्ष में दो उपग्रह छोड़ चुका है। अंतरिक्ष अभियान के क्षेत्र में एक और मील का पत्थर स्थापित करते हुए भारत ने 15 जुलाई को स्वदेश निर्मित अत्याधुनिक संचार उपग्रह जीसैट-12 का श्रीहरिकोटा से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी सी-17 से प्रक्षेपण करने में सफलता हासिल की है। इस प्रक्षेपण के बाद भारत के 187 ट्रांस्पोंडर हो जाएंगे। लेकिन अभी भी हम इसरो द्वारा लक्षित 2012 तक 500 ट्रांस्पोंडरों से पीछे हैं। इसके माध्यम से डीटीएच, वी सैट परिचालन के क्षेत्र में बढ़ रही मांग को पूरा करने में मदद मिलेगी। अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में हम लगातार प्रगति कर रहे हैं, लेकिन अभी भी हम पूरी तरह से आत्मनिर्भर नहीं हो पाए हैं। गत वर्ष इसरो ने जीसैट-8 का प्रक्षेपण फ्रेंच गुयाना के अंतरिक्ष केंद्र से किया था। पर्यावरण संबधी अध्ययन के लिहाज से फ्रांस से संयुक्त उपक्रम पर विचार चल रहा है। क्रायोजेनिक तकनीकी के परिप्रेक्ष्य में पूर्ण सफलता नहीं मिलने के कारण भारत इस मामले में आत्मनिर्भर नहीं हो पाया है, जबकि प्रयोगशाला स्तर पर क्रायोजेनिक इंजन का सफलतापूर्वक परीक्षण किया जा चुका है। स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन की सहायता से लांच किए गए प्रक्षेपण यान जीएसएलवी की असफलता के बाद इस पर सवालिया निशान लगा हुआ है। भारतीय प्रक्षेपण रॉकेटों की विकास लागत विदेशी प्रक्षेपण रॉकेटों की लागत की एक-तिहाई है। भारत में इनसैट प्रणाली की क्षमता को जीसैट द्वारा मजबूत बनाया जा रहा है, जिससे दूरस्थ शिक्षा, दूरस्थ चिकित्सा ही नहीं बल्कि ग्राम संसाधन केंद्र को उन्नत बनाया जा सकेगा। जीसैट 12 को इंसैट 2 ई और इनसैट 4 ए के साथ स्थापित किया जाएगा। 2002 में कल्पना के बाद पीएसएलवी के 19 प्रक्षेपण में यह दूसरा मौका है जब संचार उपग्रह छोड़ने में इसका उपयोग किया गया है। इसरो ने इस प्रक्षेपण में उच्च क्षमता के 40 विन्यासों का उपयोग किया, जिनमें छह ठोस मोटर हैं, जो 12 टन प्रणोदक ले जा रहे हैं। इसके पहले पीएसएलवी की उड़ानों के लिए नौ टन प्रणोदक ले जाने का मानक रहा है। 2010 में जीएसएलवी के दो अभियान विफल हो गए थे। जीएसएलवी एफ 06 संचार उपग्रह जीसैट-5 पी को लेकर जाने वाले इस यान में प्रक्षेपण के महज एक मिनट बाद ही विस्फोट हो गया था और यह बंगाल की खाड़ी में गिर गया था। इसी तरह जीएसएलवी-डी 3 जीसैट-4 का अभियान भी अप्रैल 2010 में विफल हो गया था। इन विफलताओं के कारण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के आगामी कार्यक्रमों पर भले ही संदेह जताया गया हो, लेकिन इसरो के पीएसएलवी सी-16 ने 20 अप्रैल, 2011 को रिर्सोस सैट-2 एवं अन्य छोटे उपकरणों को निर्धारित कक्षाओं में ले जाकर सफलता पूर्वक स्थापित किया। रिर्सोस सैट 2 ऐसा आधुनिक सेंस्ंिाग उपग्रह है जिससे प्राकृतिक संसाधनों के अध्ययन और प्रबंधन में मदद मिलेगी। इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन ने कहा है कि भारत की अंतरिक्ष योजना भविष्य में मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन भेजने की है। लेकिन इस तरह के अभियान की सफलता सुनिश्चित करने के लिए अभी बहुत सारे परीक्षण किए जाने हैं। भारत वर्ष 2016 में नासा के चंद्र मिशन का हिस्सा बन सकता है और इसरो चंद्रमा के आगे के अध्ययन के लिए अमेरिकी जेट प्रणोदन प्रयोगशाला से साझेदारी भी कर सकता है। देश में आगामी चंद्र मिशन चंद्रयान 2 के संबंध में कार्य प्रगति पर है। चंद्रयान 2 के 2013-14 में प्रक्षेपण की संभावना है। भविष्य में अंतरिक्ष के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। कुछ साल पहले तक फ्रांस की एरियन स्पेस कंपनी की मदद से भारत अपने उपग्रह छोड़ता था। अब वह ग्राहक के बजाय साझेदारी की भूमिका पर पहुंच गया है। भारत अंतरिक्ष विज्ञान में नई सफलताएं हासिल करके विकास को गति प्रदान कर सकता है। (लेख्रक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं).

Saturday, July 16, 2011

संचार उपग्रह जीसैट का सफल प्रक्षेपण

श्रीहरिकोटा, एजेंसियां : अंतरिक्ष अभियान के क्षेत्र में एक और मील का पत्थर स्थापित करने हुए भारत ने शुक्रवार को अत्याधुनिक संचार उपग्रह जीसैट-12 का श्रीहरिकोटा से स्वदेश निर्मित घ्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी-सी17 से अंतरिक्ष में सफल प्रक्षेपण किया। उच्च क्षमता वाले 12 ट्रांसपांडर युक्त जीसैट-12 उपग्रह का जीवनकाल करीब आठ वर्ष है। पीएसएलवी के साथ इसपर करीब 200 करोड़ रुपये का खर्च आया है। उम्मीद की जा रही है कि इससे देश को ट्रांसपांडरों की कमी से निजात मिल सकेगी। करीब 53 घंटे की उल्टी गिनती के बाद शाम चार बजकर 48 मिनट पर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे प्रक्षेपण स्थल से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का राकेट पीएसएलवी आकाश के सीने को चीरता हुए आगे बढ़ा और 20 मिनट बाद ही 1,410 किलोग्राम का जीसैट-12 को कक्षा में पहुंचा दिया गया। जीसैट-12 से टेलीमेडिसिन और टेली ऐजुकेशन समेत विभिन्न संचार सेवाओं के लिए ट्रांसपांडर की उपलब्धता बढ़ाने में मदद मिलेगी। जीसैट-12 के प्रक्षेपण के बाद भारत के 175 ट्रांसपांडर हो जाएंगे लेकिन अभी भी इसरो के 2012 तक 500 ट्रांसपांडर के लक्ष्य से पीछे है जिसके माध्यम से दूरसंचार, डायरेक्ट टू होम और वी सैट परिचालन के क्षेत्र में बढ़ती मांगों को पूरा करने में मदद मिलेगी। सफल प्रक्षेपण से प्रफुल्लित नजर आ रहे इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन ने इसकी घोषणा करते हुए कहा, मुझे यह बताते हुए काफी खुशी हो रही है कि पीएसएलवी-सी17 : जीसैट 12 अभियान सफल रहा। प्रक्षेपण यान ने काफी सटीक ढंग से उपग्रह को उपयुक्त कक्षा में भेज दिया। अपने लगातार 18वें सफल अभियान में पीएसएलवी बादल भरे आसमान को चीरता हुआ आगे बढ़ा और उपग्रह के कक्षा में पहुंचने के बाद नियंत्रण कक्ष में मौजूद वैज्ञानिकों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। इसरो के अध्यक्ष राधाकृष्णन ने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जीसैट 12 के सफल प्रक्षेपण के लिए इसरो की पूरी टीम को बधाई दी है। राधाकृष्णन ने कहा कि आने वाले महीने में इसरो पीएसएलवी के कई मिशनों को आगे बढ़ाएगा और कई उपग्रहों का प्रक्षेपण करेगा। वहीं, इसरो की इस उपलब्धि पर बधाई देते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री वी. नारायणसामी ने कहा कि इससे देश को और ट्रांसपांडरों की जरूर को पूरा करने में मदद मिलेगी। जीसैट-12 को पृथ्वी के सबसे करीबी बिन्दू 284 किलोमीटर और सबसे दूर के बिन्दु 21 हजार किलोमीटर के दीर्घवृताकार स्थानांतरण कक्षा में भेजा गया है। इसी तरह, यान में लगा तरल दूरस्थ मोटर उपग्रह (एलएएमएस) को वृताकार कक्षा में स्थापित करने में उपयोग में लाया जाएगा। जीसैट का उद्देश्य इनसैट प्रणाली की क्षमता को मजबूत बनाना है ताकि दूरस्थ शिक्षा, दूरस्थ चिकित्सा और ग्राम संसाधन केंद्र को उन्नत बनाया जा सके। जीसैट 12 को इनसैट 2ई और इनसैट 4ए के साथ स्थापित किया जाएगा। साल 2002 में कल्पना के बाद पीएसएलवी के 19 प्रक्षेपण में यह दूसरा मौका है जब संचार उपग्रह छोड़ने में इसका उपयोग किया गया है। इसरो ने इस प्रक्षेपण में उच्च क्षमता के 40 विन्यासों का उपयोग किया जिसमें छह ठोस मोटर लगे हुए हैं जो 12 टन ठोस प्रणोदक ले जा रहा है। इससे पहले पीएसएलपी के उड़ानों के लिए नौ टन प्रणोदक ले जाने का मानक रहा था। जिसप्रकार के विन्यास का उपयोग जीसैट के प्रक्षेपण के लिए किया गया है, उस प्रकार के विन्यास का उपयोग साल 2008 में चंद्रयान के प्रक्षेपण के लिए किया गया था। अप्रैल और दिसंबर 2010 में जीएसएलवी की दो उड़ानों के विफल रहने के बाद इसरो ने अपने विश्वस्थ प्रक्षेपण यान पीएसएलवी को जीसैट-12 के प्रक्षेपण के लिए चुना। जीएसएलवी का प्रक्षेपण विफल रहने के कारण जीसैट 5 और जीसैट 5पी अभियान को बड़ा धक्का लगा था जिसके कारण ट्रांसपांडर की कमी आ गई थी।

Tuesday, July 12, 2011

अटलांटिस के पास कबाड़ की तलाश


अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा अंतरिक्ष में मलबे के एक टुकड़े की तलाश कर रही है जिसके शटल अटलांटिस के रास्ते में आने की आशंका जताई गई है। आशंका जताई गई है कि यह टुकड़ा मंगलवार तक अटलांटिस के निकट पहुंच कर उसके लिए खतरा बन सकता है। अटलांटिस के अंतरिक्ष स्टेशन से जुड़ने के बाद इसके वहां मौजूद होने की बात सामने आई थी। नासा के शटल कार्यक्रम के उप प्रबंधक लीरॉय केन ने कहा कि इस बात की पूरी कोशिश की जाएगी कि मलबे का टुकड़ा शटल और स्टेशन से टकराने की स्थिति में न आए। केन ने कहा, हम सामान्य प्रक्रिया ही अपनाएंगे। इस मामले को सामान्य तरीके से निपटा जाएगा। अभी हमारे पास शुरुआती जानकारी है। उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष स्टेशन के रास्ते में पड़ी इस वस्तु के आकार के बारे में कोई जानकारी नहीं है, लेकिन आने वाले समय में और जानकारी आने की संभावना है। अटलांटिस नासा के शटल मिशन का आखिरी शटल है, जिसे अंतरिक्ष में भेजा गया है। अंतरिक्ष यान अटलांटिस चार अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर सफलतापूर्वक रविवार को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र पर 12 दिन के मिशन पर पहुंचा है। इस मिशन के पूरा होने के बाद नासा के अंतरिक्ष कार्यक्रम के एक युग का अंत हो जाएगा। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र के साथ अटलांटिस का 12वां मिलन न्यूजीलैंड के पूर्वी समुद्र तट से लगभग 386 किलोमीटर ऊपर दो यानों के परिभ्रमण के साथ पूरा हुआ। वहां पहले से मौजूद तीन अंतरिक्ष यात्रियों ने यान की पारम्परिक रूप से अगवानी की। अटलांटिस द्वारा अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र तक की यात्रा साल्मोनेला बैक्टीरिया द्वारा पैदा होने वाले जठरांत्र रोगों के लिए टीके विकसित करने का एक प्रयोग है। अटलांटिस अपने साथ पर्याप्त मात्रा में कल-पुर्जे भी लेकर गया है, ताकि शटल कार्यक्रम बंद होने के बाद भी अंतरिक्ष केंद्र को सक्रिय रखा जा सके। इस ऐतिहासिक मिशन का नेतृत्व अमेरिकी नौसेना के सेवानिवृत्त कैप्टन क्रिस फग्र्यूसन कर रहे हैं। वह अंतरिक्ष में अपनी तीसरी उड़ान पर हैं। उनके अलावा पायलट डौग हर्ली अपने दूसरे अंतरिक्ष मिशन पर हैं। हर्ली नौसेना के कर्नल हैं।


पृष्ठ संख्या 14, दैनिक जागरण (राष्ट्रीय संस्करण), 12 जुलाई, 2011

सौर ऊर्जा से जगमगाएंगे देश भर के स्मारक


देशभर के स्मारकों को रात के समय जगमगाने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) सौर ऊर्जा (ग्रीन एनर्जी) को बढ़ावा देगा। इस योजना को अमली जामा पहनाने के लिए एएसआई गंभीरता से विचार कर रहा था। एएसआइ के दिल्ली मंडल में इस योजना को राष्ट्रमंडल खेलों तक पूरा किया जाना था। मगर किन्हीं कारणों से योजना पिछड़ गई थी। एएसआइ के दिल्ली मंडल के अधीक्षण पुरातत्वविद् डा. के के मोहम्मद कहते हैं कि ऊर्जा बचाने और प्रदूषण रोकने के लिए ग्रीन एनर्जी बेहतर विकल्प है। पिछले कुछ माह से योजना आगे नहीं बढ़ पा रही थी। अब फिर से इसे आगे बढ़ाने के लिए गंभीरता से प्रयास किया जा रहा है। बिजली की अत्यधिक खपत और भारी भरकम बिजली के बिलों के भुगतान को देखते एएसआइ ने कुछ साल पहले स्मारकों में सौर ऊर्जा का उत्पन्न कर उसका उपयोग करने की योजना बनाई थी। प्रयोग के तौर पर सबसे पहले कुतुबमीनार में सौर ऊर्जा सिस्टम लगाए जाने की बात कही गई थी। बाद में इसे कुतुबमीनार में न लगाकर जंतर मंतर स्मारक व सफदरजंग में लगाने का फैसला लिया गया। दोनों स्मारकों में सौर ऊर्जा पैनल लगाए गए हैं और बेहतर तरीके के काम कर रहे हैं। योजना को राष्ट्रमंडल खेलों से पहले पूरा करने का लक्ष्य था। मगर विभिन्न पचड़ों के चलते योजना में देरी होती गई। उस समय कुछ पुरातत्वविदें ने सवाल उठाए थे कि इनके लगाए जाने से स्मारकों की अपनी भव्यता प्रभावित होगी। एएसआइ का कहना है कि यह बिल्कुल गलत है कि पैनल लगा दिए जाने से स्मारकों की सुंदरता या भव्यता पर कोई असर पड़ेगा। डा. के.के. मोहम्मद कहते हैं कि एएसआइ के पास तमाम जगह हैं, बड़े पार्क हैं, सौर ऊर्जा पैनल पार्को के किसी भी भाग में लगाए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि एएसआइ सरकार की इस योजना को आगे बढ़ाने के लिए कृतसंकल्प है और इसे आगे बढ़ाया जाएगा


पृष्ठ संख्या 02, दैनिक जागरण (राष्ट्रीय संस्करण), 12 जुलाई, 2011