Sunday, January 30, 2011

वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड का सबसे गर्म ग्रह खोजा


खगोलविदों ने ब्रह्मांड के सबसे गर्म ग्रह को खोजने का दावा किया है। इसका तापमान 3200 डिग्री सेल्सियस है। इस ग्रह की खोज पिछले साल ही हो गई थी, मगर इसके तापमान के बारे में अब पता लगा है। डेली मेल की खबर के मुताबिक, हमारे सौरमंडल के बाहर के डब्ल्यूएएसपी -33 बी नामक इस ग्रह के तापमान का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि जिस तारे की कक्षा में यह ग्रह स्थित है उसका तापमान भी 7160 डिग्री सेल्सियस है। यह एंड्रोमेडा नक्षत्र समूह में 380 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है। जबकि सूर्य का तापमान इस तारे से काफी कम 5600 डिग्री सेल्सियस है। वर्ष 2006 में ही खगोलविदों को डब्ल्यूएएसपी-33 बी के तारे की टिमटिमाती रोशनी को देखकर ही उसके अस्तित्व का आभास हुआ था। यह ग्रह आकार में बृहस्पति से साढ़े चार गुना बड़ा है। बुध सूर्य के चारों ओर जिस दूरी पर चक्कर लगाता है, यह ग्रह अपने तारे से करीब सात फीसदी कम दूरी पर उसका चक्कर लगाता है। खगोलविदों के मुताबिक डब्ल्यूएएसपी -33 बी 29.5 घंटे में अपने तारे का चक्कर लगाता है। इससे पहले तक सबसे गर्म ग्रह माने जाने वाले मिल्की वे गैलेक्सी डब्ल्यूएएसपी-12बी का तापमान इससे 900 डिग्री सेल्सियस कम था। यह ग्रह अपनी कक्षा का चक्कर 1.1 दिन में लगाता है। यह अध्ययन स्टाफोर्डशायर में कीले विश्वविद्यालय के एलीक्स स्मिथ की अगुवाई में हुआ है।


70 रुपये में मिलेगा 4.5 लीटर पेट्रोल!


ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने बनाया कृत्रिम पेट्रोल, पांच साल के भीतर जनता के लिए उपलब्ध होने का दावा
आसमान छू रहे पेट्रोल के दामों को देखते हुए यह खबर बेहद सुकून देने वाली हो सकती है। ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने क्रांतिकारी सफलता हासिल करते हुए कृत्रिम पेट्रोल बनाने का दावा किया है। उनका कहना है कि इसकी कीमत सामान्य पेट्रोल से बेहद कम होगी और मौजूदा कारों में इसके इस्तेमाल के लिए तकनीक में किसी तरह के परिवर्तन की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। साथ ही इसकी एक विशेषता यह भी होगी कि इससे कार्बन उत्सर्जन बिल्कुल नहीं होगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि कृत्रिम पेट्रोल की कीमत मात्र 90 पेंस (करीब एक पौंड) प्रति गैलन होगी। जबकि इस वक्त ब्रिटेन में पेट्रोल की कीमत करीब सवा पौंड प्रति लीटर है। यानी इतने पैसे में एक गैलन से भी ज्यादा पैट्रोल खरीदा जा सकेगा। भारतीय मुद्रा के हिसाब से करीब 70 रुपये में साढ़े चार लीटर पेट्रोल आ जाएगा। यह ईधन हाईड्रोजन आधारित है। मगर आलोचकों का यह भी कहना है कि इसके बड़े पैमाने पर उपलब्ध होने में अभी सालों लग जाएंगे। हाइड्रोजन आधारित होने के कारण यह ग्रीन हाउस गैसों को वातावरण में नहीं छोड़ता है। इसलिए इससे ग्लोबल वार्मिग के खिलाफ भी अहम मदद मिल सकती है। उम्मीद जताई जा रही है कि ब्रिटिश प्रयोगशाला में टॉप सीक्रेट कार्यक्रम के तहत विकसित की गई यह तकनीक आने वाले दिनों में पैट्रोल की परिभाषा ही बदल देगी। भारत की तरह ब्रिटेन में भी पेट्रोल के बढ़ते दामों ने जनता को त्रस्त कर रखा है। इस साल अप्रैल में ब्रिटिश सरकार ने फिर दाम बढ़ाने की घोषणा कर दी है। ऑक्सफोर्ड की रदरफोर्ड एप्पलटन प्रयोगशाला में सेला एनर्जी द्वारा कृत्रिम पेट्रोल विकसित किया गया है। कंपनी का दावा है कि यह पेट्रोल मौजूदा कारों में भी सामान्य तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है। सेला एनर्जी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी स्टीफन वोलेर ने बताया कि उन्हें उम्मीद है कि पांच सालों के भीतर यह पेट्रोल बड़े पैमाने पर स्टेशनों पर उपलब्ध होगा। उन्होंने कहा कि हम वाहन निर्माता कंपनियों के साथ अगले साल तक इसके परीक्षण की उम्मीद कर रहे हैं। इसके बाद यह तीन से पांच साल के भीतर जनता के लिए उपलब्ध हो जाएगा। उन्होंने बताया कि हम नए माइक्रो बीड्स विकसित कर चुके हैं जिनका इस्तेमाल मौजूदा गैसोलिन या पेट्रोल वाहनों में तेल आधारित ईधन को बदलने में किया जा सकता है। वोलेर ने कहा कि प्रारंभिक संकेत हैं कि इन माइक्रो बीड्स को मौजूदा वाहनों में बगैर इंजन में परिवर्तन किए प्रयोग किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि यह हाइड्रोजन आधारित है इसलिए इस्तेमाल के समय इससे जरा भी कार्बन उत्सर्जन नहीं होगा, बिल्कुल इलेक्टि्रक वाहनों की तरह। इस पेटेंट हाइब्रिड में बेहद सूक्ष्म माइक्रो फाइबर हैं, बाल की मोटाई से 30 गुना महीन। ये उत्तक जैसे पदार्थ बनाते हैं जो वातावरण के लिए सुरक्षित हैं। वोलेर ने बताया कि यह ईधन नैनोटेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके बनाया गया है। वैज्ञानिक दल की अगुवाई करने वाले प्रोफेसर स्टीफन बेनिंगटन ने बताया कि हाइड्रोजन कच्चे तेल की आपूर्ति को थामने के लिए एक आदर्श हल है।


वनमानुष से 97 समान हैं हम


वनमानुषों और मानवों के डीएनए चिंपाजी के डीएनए से अधिक समान हैं

जंगलों में अब केवल 50 हजार बार्नियन प्रजाति के वनमानुष शेष बचे हैं
वैज्ञानिकों की पूर्व सोच से कहीं अधिक समानता है मानव और वनमानुष में, इस बात का खुलासा नई रिसर्च में हुआ है। वनमानुष का पहला ब्लूप्रिंट लिया गया जिसके जेनेटिक कोड से पता चला है कि मनुष्यों और वनमानुषों (औरंगउटान) के डीएनए 97
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समान हैं। जबकि लाल बालों वाले वानर चिंपाजी से बहुत अधिक समानता रखते हैं, इनमें 99 प्रतिशत समान डीएनए पाए गए हैं। इस स्टडी ने पहली बार वनमानुषों और मानवों के जेनेटिक कोड को तलाशने में सफलता हासिल की है। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि उनकी इस खोज से कई प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है। वर्तमान में 50 हजार बार्नियन और 7 हजार सुमत्रन नामक वनमानुष जंगलों में शेष बचे हुए हैं। जंगलों के खत्म होने के कारण इनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है। वैज्ञानिकों ने सुजी नाम की सुमत्रन प्रजाति के वनमानुष के डीनए को अन्य 5 सुमत्रन और 5 ही बार्नियन प्रजाति के वनमानुषों के डीएनए से मेल कराया। उन्होंने पाया कि 1 करोड़ 30 लाख डीएनए वानरों से मेल खाते हैं। कुछ जानवरों में से वनमानुष ही ऐसे हैं जिन्होंने मिरर टेस्ट पास किया है। शोध का सुझाव है कि जैसे मनुष्यों में विभिन्नताएं पाई जाती हैं उसी तरह अलग-अलग वनमानुषों में अलग-अलग ही योग्यताएं होती हैं। वनमानुषों में एक गुण ऐसा पाया गया है कि वह संकेतों की भाषा द्वारा मानवों तक अपनी बात पहुंचाने की क्षमता रखते हैं। चिंपाजी और मानवों में 5 से 7 लाख वर्षों से समानता देखी जा रही है। लेकिन नई रिसर्च ने इस बात को साबित कर दिया है कि वनमानुषों (औरंगउटान) के डीएनए चिंपाजी से अधिक मानवों के डीएनए जैसे हैं।