Sunday, January 16, 2011

खोजपरक विज्ञान की खोज

नवरत्न विश्वविद्यालयों की अवधारणा पर लेखक की टिप्पणी
पिछले दिनों चेन्नइ में संपन्न भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 98वें अधिवेशन में मुख्य फोकस भारतीय विश्वविद्यालयों में विज्ञान शिक्षा की उच्च गुणवत्ता और वैज्ञानिक अनुसंधान में उत्कृष्टता पर था। उम्मीद की जानी चाहिए कि हमारे राजनेता इस थीम को ध्यान में रखकर विज्ञान के क्षेत्र में साहसिक पहल करेंगे। भारतीय विश्वविद्यालयों में विज्ञान शिक्षा वैश्विक मानकों की दृष्टि से बहुत पीछे है और यही बात वैज्ञानिक अनुसंधान पर भी लागू होती है। इन क्षेत्रों में पिछड़ने के कारण आज हमें सक्षम तकनीकी कर्मचारियों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। स्पष्ट नियमों और निगरानी के अभाव में प्राइवेट और विदेशी संस्थानों की संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकिन शिक्षा का स्तर अपेक्षित मानदंडों के अनुरूप न होने के कारण अपेक्षित परिणाम नहीं मिल रहे हैं। मजबूरन सरकार को विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उत्कृष्ट शिक्षा मुहैया कराने के लिए आगे आना पड़ रहा है। सरकार इस कार्य में तभी सफल हो सकती है, जब वह मानव संसाधनों का विस्तार करे और शैक्षणिक स्तर में वृद्धि करे। नए विश्वविद्यालय की बात सुनने में अच्छी बात है, लेकिन हमारा मुख्य जोर मौजूदा विश्वविद्यालयों में इंफ्रास्ट्रक्चर, वित्तीय स्थिति और उनकी स्वायत्तता को मजबूत करने पर होना चाहिए ताकि अनुसंधान और शिक्षा के माहौल को उत्कृष्ट नतीजे देने के काबिल बनाया जा सके। आजकल हमारे नीति निर्धारक और टेक्नोक्रेट इनोवेशन या नए आविष्कारों पर बहुत जोर देते हैं। इनोवेशन को खरीदा या थोपा नहीं जा सकता। यह तभी हासिल हो सकता है, जब उच्च शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थानों में रिसर्च और शिक्षा के लिए उचित माहौल तैयार किया जाए। विश्वविद्यालयों को आकर्षक नाम देने मात्र से ही इनोवेशन प्राप्त नहीं किया जा सकता। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल ने विज्ञान अधिवेशन में ऐलान किया कि सरकार नवरत्न विश्वविद्यालयों की अवधारणा पर विचार कर रही है। इसके अलावा सरकार 12 इनोवेशन विश्वविद्यालय भी स्थापित करना चाहती है, जो शिक्षा के क्षेत्र मे उच्च मानदंड कायम करेंगे और दुनिया के सर्वोत्तम संस्थानों के साथ प्रतिस्पर्धा करेंगे। कहा जा रहा है कि देश में गरीबी, भुखमरी, बीमारियों और जल संकट जैसी समस्याओं से निपटने के लिए इनोवेशन विश्वविद्यालय विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में अपने उत्कृष्ट नतीजों के द्वारा महत्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं। लेकिन इस बात की क्या गारंटी है कि इस तरह के आकर्षक नाम वाले विश्वविद्यालय शैक्षणिक उत्कृष्टता और रचनात्मकता देने में कामयाब होंगे। कुछ विशेषज्ञों ने सरकार द्वारा एकेडमी ऑफ साइंटिफिक एंड इनोवेटिव रिसर्च के स्थापित किए जाने के प्रस्ताव को गलत ठहराया है। यह अकादमी केंद्रीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद के सहयोग से स्थापित होगी। मोटे तौर पर यह पीएचडी और पोस्ट डॉक्टरल फेलो तैयार करेगी। हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती विश्वविद्यालयों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी को ऊंचे स्तर पर ले जाने की है। यदि हमने सीएसआईआर को प्रौद्योगिकी विकसित करने के उसके मूल उद्देश्य से भटका कर उसे मानव संसाधन विकसित करने के काम पर लगा दिया तो इससे विश्वविद्यालयों का बड़ा अहित होगा। यह सही है कि भारतीय साइंस को आज इनोवेशन की तलाश है, यह उसकी जरूरत भी है। लेकिन यह इनोवेशन सिर्फ सरकार की इनोवेटिव घोषणाओं से ही हासिल नहीं किया जा सकता। इसे सुविचारित नीतियों, सही प्राथमिकताओं और दीर्घकालिक प्रयासों से ही हासिल किया जा सकता है। इसमें सरकार के साथ-साथ वैज्ञानिक समुदाय की भूमिका भी अहम होगी। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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