Saturday, April 23, 2011

अंतरिक्ष में लंबी छलांग


पीएसएलवी के सफल प्रक्षेपण पर लेखक  की टिप्पणी
20 अप्रैल, 2011 का दिन अंतरिक्ष अभियान के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक दिन बन गया है। इस दिन धु्रवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान यानी पीएसएलवी अपने 18वें अभियान पर श्रीहरिकोटा प्रक्षेपण स्थल के अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित हुआ और उड़ान भरने के करीब 18 मिनट बाद 822 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित कक्षा में तीन उपग्रहों रिसोर्ससैट-2, यूथसैट और सिंगापुर के एम्ससैट को स्थापित करने में सफल रहा। पीएसएलवी सी-16 द्वारा स्थापित किए उपग्रहों में से इसरो द्वारा निर्मित आधुनिक दूर संवेदी उपग्रह रिसोर्ससैट-2 का वजन 1206 किलोग्राम है। इस भारतीय उपग्रह से प्राकृतिक संसाधनों के अध्ययन तथा प्रबंधन में काफी मदद मिलेगी। यह अंतरिक्ष में रिसोर्ससैट-1 की जगह लेगा जिसे सन 2003 में स्थापित किया गया था। इसकी जीवनकाल पांच साल का होगा। रिसोर्ससैट-2 28 अप्रैल से ही तस्वीरें भेजनी शुरू कर देगा। पीएसएलवी की मदद से स्थापित दूसरा उपग्रह यूथसैट 92 किलो का है। इस उपग्रह को भारत व रूस ने संयुक्त रूप से विकसित किया है। इससे तारों एवं मौसम के अध्ययन में मदद मिलेगी। तीसरा सिंगापुर का एक्ससैट उपग्रह 106 किलोग्राम का है। इसे सिंगापुर की नेनयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी ने बनाया है। इसका उपयोग मानचित्रीकरण के लिए किया जाएगा। रिसोर्ससैट-2 की लागत 140 करोड़ रुपये है। इसमें दो सॉलिड स्टेट रिकॉर्डर हैं। प्रत्येक रिकॉर्डर की तस्वीरें कैद करने की क्षमता 200 जीबी है। इसमें एक ही प्लेटफॉर्म पर उच्च, मध्यम तथा हाई रिजोल्यूशन कैमरे लगे हैं। ये अत्याधुनिक कैमरे फसलों की स्थिति के आकलन में सहायता प्रदान करेंगे। इसके अलावा कैमरे वनों की कटाई की स्थिति, झीलों व जलाशयों का जल स्तर, हिमालय में पिघलने वाली बर्फ तथा पोतों के लिए निगरानी प्रणाली का कार्य करेंगे। पोतों की निगरानी प्रणाली के लिए इसमें कनाडा के कॉमडेव द्वारा निर्मित स्वचालित पहचान प्रणाली लगी है जिससे पोतों के स्थान व उनकी गति जैसी जानकारियां हासिल होंगी। रिसोर्ससैट-2 के कक्षा में स्थापित होने के बाद इसरो के उपग्रह केंद्र निदेशक टीके एलेक्स ने कहा कि इसे सही कक्षा में स्थापित किया गया है। इसके सौर पैनल सुचारू रूप से काम कर रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि इसके चित्रों का उपयोग 15 देश करेंगे जो इसे वैश्विक मिशन का दर्जा देता है। इसके साथ ही कृषि, जल संसाधन, ग्रामीण विकास, जैविक संसाधन और भौगोलिक संभावनाओं से जुड़े विशिष्ट क्षेत्रों में निगरानी भी हो सकेगी। इसरो के अध्यक्ष के. राधाकृष्णन ने मिशन को भव्य सफलता की संज्ञा देते हुए कहा कि इस सफलता से पीएसएलवी की विश्वसनीयता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है। पिछले वर्ष जीएसएलवी की दो लगातार असफलताओं के बाद यह सफलता वैज्ञानिकों का मनोबल बढ़ाने वाली है। 25 सितंबर, 2010 को जीएसएलवी मिशन तब असफल हो गया था जब वह प्रक्षेपण के 47 सेकेंड बाद ही आग की लपटों में घिरकर नष्ट हो गया। 15 अप्रैल, 2010 को भी जीएसएलवी डी-3 विफल हो गया था। इन दोनों विफलताओं से भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को तगड़ा झटका लगा था। पीएसएलवी श्रृंखला का पहला अभियान 20 सितंबर, 1993 को शुरू हुआ था जो कि असफल रहा था, लेकिन उसके बाद के सभी 17 अभियान सफल रहे हैं। अब तक अनेक देशों ने उपग्रह बनाए हैं, लेकिन मात्र 10 देश ही उन्हें लांच व्हीकल के जरिये कक्षा में स्थापित करने में सफलता हासिल कर पाए हैं। ऐसे देशों में रूस, अमेरिका, यूक्रेन, फ्रांस, जापान, चीन, ब्रिटेन, भारत, इजरायल व ईरान हैं। निश्चित रूप से भारत की यह सफलता गौरवान्वित करने वाली है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं).

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