Tuesday, June 14, 2011

परमाणु रिएक्टरों का रक्षक बनी गामा डोज लॉगर


भारतीय वैज्ञानिकों ने परमाणु रिएक्टरों और उनसे जुड़ी ईधन सुविधाओं के आस-पास के पर्यावरण में फैलने वाले विकिरण पर लगातार निगरानी रखने के लिए पहली बार स्वदेशी ऑनलाइन तकनीक विकसित की है। यह पर्यावरण में हो रहे हर प्रकार के परमाणु विकिरण पर नजर रखती है। इसे गामा डोज लॉगर तकनीक कहा जाता है। इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (आइजीसीएआर) के रेडियोलॉजी सुरक्षा और पर्यावरण समूह (आरएसईजी) के अधिकारी डॉ.बी.वेंकटरमण ने बताया कि इस तकनीक से सतत निगरानी द्वारा किसी अप्रिय घटना के होने से पहले अधिक रिसाव को तत्काल पकड़ा जा सकता है। यह प्रणाली आपातकालीन स्थिति के लिए भी उपयोगी है। उन्होंने बताया कि गामा डोज लॉगर प्रणाली सौर ऊर्जा से चार्ज हो रहीं बैटरियों पर काम करती है, इसलिए यह वातावरण की दृष्टि से भी अनुकूल है। तकनीक के लोकल एरिया नेटवर्क के जरिए हर वक्त रेडियोएक्टिव पदार्थो के उत्सर्जन और उसके बाद हो रही रासायनिक प्रतिक्रिया की वास्तविक स्थिति का भी पता लगाया जा सकता है। बेहतर ढंग से समझने के लिए इसमें ग्राफिकल डिस्प्ले भी देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि स्वेदश विकसित यह ऑनलाइन प्रणाली आयातित प्रणालियों की तुलना में कम से कम डेढ़ लाख रुपये सस्ती है और इसमें अतिरिक्त विशेषताएं भी हैं। उन्होंने कहा, बड़ी बात इस तरह की प्रणाली को स्वदेशी तौर पर विकसित करना है जिसका मतलब है उपलब्धता में विस्तार, आयात पर कम निर्भरता और सबसे अधिक महत्वपूर्ण है सुलभ उपयोगिता और देखभाल। आइजीसीएआर की ताजा विज्ञप्ति में वरिष्ठ वैज्ञानिक जी. सूर्य प्रकाश ने लिखा है, द रेडियोलॉजिकल सेफ्टी डिवीजन (आरएसडर) ने गामा डोज लॉगर तकनीक तैयार की है। इसमें अत्याधुनिक गामा ट्रेसर की क्षमताओं के साथ लैन के माध्यम से ऑनलाइन डाटा भेजने, संचार टॉवरों, डाटा सुरक्षा, किफायत और विस्तार क्षमता की जरूरत जैसी आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता है।कलपक्कम परमाणु संयंत्र में चार जगहों पर सफलतापूर्वक इसे लगा दिया गया है। यह पिछले छह महीने से सुगमता और संतोषजनक तरीके से काम कर रही है।


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