Thursday, December 30, 2010

दिमाग में छिपा होता है राजनीति का कीड़ा !


व्यक्ति किस दल के विचारों से सरोकार रखता है इसका पता उसके ब्रेन स्कैनिंग से मालूम हो सकेगा

लदंन। कोई दक्षिणपंथी होता है तो वामपंथी। कोई कट्टर होता है तो कोई उदारवादी। लेकिन क्या आपको मालूम है कि किसी पार्टी विशेष से जुड़ने में प्रमुख भूमिका कौन निभाता है? आश्यर्चजनक रूप से हमारे दिमाग का प्रमस्तिष्क खंड ही हमें किसी पार्टी विशेष की खूबियों के प्रति प्रभावित करता हैं। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन द्वारा किए गए एक ताजा शोध में खुलासा किया गया है कि हमारी विशेष राजनीतिक रुचियां हमारे दिमाग की विशेष बनावट के कारण उत्पन्न होती है। यानी कि कौन व्यक्ति किस दल के प्रति सरोकार रखता यह उसके दिमाग की विशेष बनावट पर निर्भर करती है, जिसे स्कैनिंग मशीन के द्वारा आसानी से समझा जा सकता है। वैज्ञानिकों के एक दल ने करीब 90 छात्रों के दिमाग को स्कैन किया और पाया कि जिनकी प्रमस्तिष्क खंड की मोटाई कम थी (भावना के साथ जुड़े मस्तिष्क का एक अह्म हिस्सा) वह प्राय: दक्षिणपंथी होते हैं और जिनकी मस्तिष्क के मध्य में अवस्थित सिंगुलेट खंड (निर्णय लेने व पूर्वानुमान के साथ जुड़ा क्षेत्र) की संरचना मोटी होती है वह प्राय: वामपंथी एटीटूट वाले होते हैं। यूसीएल इंस्टीट्यूट ऑफ कागनीटिव न्यूरोसाइंस के निदेशक गेरियंट रीस ने बताया कि शोध में मिले तथ्य को देख वे हैरान रह गए। हालांकि उन्होंने कहा कि अभी इस बारे में अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता है कि स्कैनिंग के जरिए किसी के बारें में भविष्यवाणी की जा सकेगी अथवा नहीं, पर साइंटिफिक परीक्षण सुझाते हैं कि इनका एक दूसरे से गहरा संबंध हो सकता है।


Wednesday, December 29, 2010

कैंसर से जूझ रही महिलाएं भी अब बन सकेंगी मां

नई तकनीक ने जगाई उम्मीद की किरण, महिलाओं की बांह में बनेंगे अंडाणु
तीन से चार माह लगते हैं पूरी प्रकिया में
डॉक्टर महिला की बांह के अगले हिस्से की त्वचा के नीचे अंडाशय के ऊतक इंप्लांट करेंगे। यदि कुछ दिन बाद ट्रांसप्लांट वाली जगह पर मटर के दाने जैसा उभार दिखता है तो डॉक्टर समझ जाएंगे कि अंडाशय के ऊतकों में अंडाणु बन चुके हैं। इन ऊतकों से अंडाणु को अलग कर आईवीएफ तकनीक के जरिए महिला गर्भधारण कर सकती है। इस प्रक्रिया में तीन से चार महीने लग सकते हैं।
7-8 बच्चों ने जन्म लिया अब तक इस तकनीक से विभिन्न देशों में

कैंसर के इलाज के चलते सैकड़ों महिलाएं हर साल बांझपन का शिकार हो जाती हैं
नई दिल्ली। बेऔलाद दंपतियों के लिए एक नई तकनीक उम्मीद लेकर आई है। खास तौर से कैंसर या अन्य बीमारियों के चलते नि:संतान मां-बाप की गोद इस तकनीक से भर सकेगी। भारत में पहली बार इस्तेमाल होने जा रही इस विधि में महिलाएं अपनी बांह में अंडाणु पैदा कर सकेंगी।
सेना के रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल में डॉक्टरों ने कैंसर की मरीज महिलाओं के अंडाशय (ओवरी) के ऊतक संरक्षित कर लिए हैं। जब इन महिलाओं की बच्चे पैदा करने की चाहत होगी तो ये डॉक्टर उनकी बांह के अगले हिस्से या पेट में ये ऊतक इंप्लांट कर देंगे। इन महिलाओं को ऐसी दवाएं दी जाएंगी, जिससे इन ऊतकों में अंडाणु बन सकें। अस्पताल के कमांडेंट लेफ्टिनेंट जनरल नरेश कुमार ने कहा कि पहली बार हम जनवरी में एक महिला की बांह की त्वचा के नीचे अंडाशय के यह संरक्षित ऊतक डालने जा रहे हैं। यह महिला फिलहाल मां बन पाने में सक्षम नहीं है, लेकिन इस तकनीक से अंडाणु पैदा करने के बाद वह आने वाले दिनों में मां बने सकेगी। उन्होंने यह भी कहा कि भारत में इस तरह का ट्रांसप्लांट पहली बार हो रहा है। अब वह महिला पूरी तरह से कैंसर रोग से मुक्त हो चुकी है।
अस्पताल में आईवीएफ विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट कर्नल पंकज तलवार ने कहा कि कैंसर के इलाज से बड़ी संख्या में महिलाएं और पुरुष बांझपन और नपुंसकता से पीड़ित हो जाते हैं। महिलाओं के मामले में उनका कैंसर का इलाज करने से पहले हम उनके अंडाशय के ऊतकों को लैब में संरक्षित कर लेते हैं। हम इसकी जांच भी करते हैं कि कहीं इसमें कैंसर कोशिकाएं न हों। 

Sunday, December 26, 2010

अब प्रिंट करें और लें मनपसंद भोजन का स्वाद

असली भोजन का 3डी प्रिंट निकाल सकता है 3डी फूड प्रिंटर
क्या आप बर्गर खाना चाहते हैं? या आपको पिज्जा ज्यादा पसंद है? कोई समस्या नहीं है बस आपको एक बटन क्लिक करना होगा और 3डी फूड प्रिंटर आपके सामने हर वो चीज बना देगा जो आप चाहते हैं! न्यूयॉर्क में कॉरनेल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा 3डी प्रिंटर विकसित किया है जो व्यावसायिक रूप से भी व्यवहार्य साबित होगा। प्रिंटर की खास बात यह है कि इसमें इंक के रूप में कच्ची खाद्य सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है जिसे प्रिंटर में डालने के बाद आपको बस एक बार रेसिपी भरने की जरूरत होती है। इसके बाद बस बटन दबाओ और मिनटों में बाहर होगा आपका मनपसंद भोजन। जो सामग्री जहां होनी चाहिए, इलेक्ट्रॉनिक ब्लूप्रिंट में बिल्कुल वैसी ही रहती है और पारंपरिक कैड (कंप्यूटर एडेड डिजाइन) सॉफ्टवेयर इसको दिखने में बिल्कुल वैसा ही रखता है जैसा भोजन होना चाहिए। डेली मेल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, डॉ. जैफरी लान लिप्टन ने बताया कि फूड प्रिंटर के जरिए आप भोजन का स्वाद, बनावट और अन्य गुणों को सुधार भी सकते हैं। जैसे, यदि आपको बिस्कुट बेहद पसंद है मगर आप उसमें अतिरिक्त कुरकुरापन चाहते हैं। आपको सिर्फ प्रिंटर का स्लाइडर, रेसिपी और निर्देश अपने अनुसार व्यवस्थित करने होंगे। यानी कुछ भी जो सिरिंज में भरा जा सकता हो, जैसे- तरल मक्खन, चॉकलेट, क्रीम, प्रिंट होकर बाहर आ जाएगी! अभी तक शोधकर्ताओं ने फूड प्रिंटर के जरिए कुकिज, केक और टर्की के मांस से बने भोजन का प्रिंट निकालने में सफलता पाई है। शिकागो के एक होटल के शेफ होमारो कैनतू ने इसके जरिए सुशी (जापानी भोजन) को प्रिंट किया। उन्होंने कहा कि आप 3डी प्रिंटर से ऐसे घर के बने एप्पल पाई की कल्पना कर सकते हैं जिसके लिए न तो सेबों को उगाने, जमीन उर्वर करने, माल ढुलाई करने, सुरक्षित रखने, पैकेजिंग करने या पकाने और सजाने तक की जरूरत नहीं पड़ती है। बस आपको भोजन की सभी सामग्री कच्चे माल के रूप में होनी चाहिएं। फिर जैसे कार, ट्रक या कूलरों आदि को जोड़ा जाता है वैसे ही भोजन का 3डी प्रिंट भी तैयार होगा। कैनतू ने कहा कि 3डी प्रिंटिंग भोजन के लिए बिल्कुल वैसा ही काम करेगी जैसा संचार के लिए ई-मेल और इंस्टेट मैसेजिंग काम करते हैं।

पहले ही पता चल जाएंगे पानी के तेवर

जलाशयों की स्थिति से हरदम परिचित रहेगा बिजली कंपनी प्रबंधन
सुंदरनगर सतलुज या ब्यास नदियों का जल अब डराएगा नहीं बल्कि ऐसा तंत्र विकसित हो रहा है जिससे पानी सूचना देगा कि उसके तेवर कब कैसे और कितने खतरनाक होंगे। कमर कसी है भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) व हिमाचल प्रदेश बिजली बोर्ड लिमिटेड ने। पानी का खौफ इस क्षेत्र को इतना डराता है कि भारत दौरे पर आए चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ ने जो सात समझौते किए हैं उनमें एक भारत को सतलुज बेसिन में पानी की जानकारी देने का भी है। चीन कितना वादा निभाता है, यह अलग बात है, लेकिन सतलुज ब्यास बेसिन के ब्यास-सतलुज बेसिन पर बने पावर प्रोजेक्टों के आधुनिकीकरण के लिए करोड़ों की लागत से सभी बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं में जल सूचना प्रणाली (एचआइएस) विकसित की जाएगी। इससे जल विद्युत परियोजनाओं के जलाशयों के परिचालन व प्रबंधन में शीर्ष प्रबंधन को सही समय पर दीर्घावधि तथा अल्पावधि निर्णय लेने में सहायता मिलेगी। इस तंत्र से विकसित होने वाली प्रणाली को रियल टाइम डिसीजन सपोर्ट सिस्टम कहा गया है। यह निर्णय जलाशयों के बहाव तथा पावर हाउस में टरबाइन चलाने की समय सारिणी, स्पिलवे गेट्स के परिचालन तथा बाढ़ की चेतावनी में कारगर सिद्ध होंगे। जल सूचना प्रणाली के तहत बड़ी परियोजनाओं में इलेक्ट्रोनिक सेंसर व डाटा स्टेशन स्थापित होंगे। इससे जलाशय स्तर, बरसात व पानी की गुणवत्ता की जानकारी रेडियो या फिर सैटेलाइट के माध्यम से एक से दूसरे स्टेशन को भेजी जाएगी। जल स्त्रोतों की योजना व प्रबंधन करने वाले सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के सभी उपभोक्ताओं को जल संबंधी निवेश में कम लागत में बेहतर उत्पादन मिल सके इसके लिए जल सूचना प्रणाली का खाका तैयार किया गया है। इस प्रणाली को नवीनतम डाटा लेकर विकसित करने की योजना है। इसके तहत सही डाटा लेना, बर्फ के पिघलने और बहाव के पूर्वानुमान की प्रणाली में सुधार किया जाएगा। जाहिर है, इससे बांधों के रखरखाव, बिजली उत्पादन और जल वितरण में भी सुधार होगा। मौसम पर नजर रखने के लिए लिए भी स्टेशन बनेगा। भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड के अध्यक्ष एबी अग्रवाल कहते हैं कि ब्यास सतलुज संपर्क योजना में भी जल सूचना प्रणाली विकसित हो रही है। प्रदेश बिजली बोर्ड लिमिटेड के मुख्य अभियंता (उत्पादन) पीसी नेगी कहते हैं कि राज्य विद्युत परिषद के अधीन चलने वाली लारजी पावर प्रोजेक्ट के साथ दूसरी बड़ी योजनाओं में जल सूचना प्रणाली के आधुनिकीकरण का खाका तैयार किया जा रहा है।

Friday, December 24, 2010

खुलेंगे अंतरिक्ष के कई गूढ़ रहस्य

वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका की गहराई में दुनिया की पहली विस्मयकारी वेधशाला तैयार करने में सफलता पाई
वैज्ञानिकों ने दुनिया की पहली ऐसी विस्मयकारी वेधशाला (ऑब्जरवेटरी) तैयार करने में सफलता हासिल कर ली है जिससे अंतरिक्ष के कई गूढ़ रहस्यों का पता चल सकता है। आइसक्यूब न्यूट्रिनो नामक यह वेधशाला अंटार्कटिका में बनाई गई है। दक्षिणी धु्रव पर बना यह एक ऐसा भीमकाय टेलीस्कोप है जिसे न्यूट्रिनो नाम के सबएटोमिक अणुओं को पहचानने के लिए डिजाइन किया गया है। न्यूट्रिनो प्रकाश की गति से धरती से होते हुए गुजरते रहते हैं। टेलीस्कोप का निर्माण पिछले सप्ताह खत्म हो चुका है हालांकि इस दौरान पिछले कुछ सालों से यह लगातार आंकड़े एकत्रित कर रहा था। न्यूट्रिनों के बारे में अभी तक वैज्ञानिकों को काफी कम जानकारी मिल सकी है। ऐसा माना जाता है कि इनमें हमारी आकाशगंगा के जन्म और ब्लैक होल के रहस्य समय कई गूढ़ राज छुप हुए हैं। भौतिकविदें का मानना है कि न्यूट्रिनो का जन्म बेहद प्रचंड कॉस्मिक घटनाओं जैसे- आकाशगंगाओं या फासले पर मौजूद ब्लैक होलों के टकराव दौरान हुआ। ये घटनाएं ब्रह्मांड के एकदम छोर पर घटी होंगी। न्यूट्रिनो किसी चुंबकीय क्षेत्र या परमाणुओं द्वारा बिना भटके या अवशोषित हुए लाखों प्रकाश वर्ष की यात्रा करने की क्षमता रखते हैं। बेहद उच्च ऊर्जा वाले ये रहस्यमयी अणु ब्रह्मांड के सबसे महत्वपूर्ण सवालों के जवाब उपलब्ध करा सकते हैं। मगर सबसे पहले इन्हें ढूंढने की चुनौती है। इसीलिए वैज्ञानिकों ने इन पर नजर रखने के लिए बर्फ वाले स्थान का इस्तेमाल किया है। वैज्ञानिक नवनिर्मित टेलीस्कोप के जरिए न्यूट्रिनो के टकराव से बनने वाले बर्फ के अतिसूक्ष्म कणों के दुर्लभ मौके को देखने की कोशिश करेंगे। इस विशालकाय टेलीस्कोप की औसत गहराई 8,000 फुट है। इस पूरी परियोजना पर 279 मिलियन डॉलर (करीब 12.5 अरब रुपये) का खर्च आया है। इनमें से नेशनल साइंस फाउंडेशन ने 242 मिलियन डॉलर (करीब 10.8 अरब रुपये) का योगदान दिया है। वेधशाला निर्माण के अंतिम चरण में 5,160 ऑप्टिकल सेंसरों को फिट करने के लिए 86 छेद किए गए। मुख्य डिटेक्टर बनाने के लिए अब इन सेंसरों को फिट किया जा चुका है। न्यूट्रिनो और परमाणु की टक्कर से जिस अणु का निर्माण होता है उसे म्यूऑन कहा जाता है। चेरेनकोव रेडिएशन नाम नीली रोशनी की चमक में ये अणु दिखाई देते हैं। अंटार्कटिक बर्फ की अत्यंत पारदर्शी परत में आइसक्यूब के ऑप्टिकल सेंसर इस नीली रोशनी की पहचान करेंगे। सबएटोमिक टक्कर के परिणामस्वरूप बनी निशानी से वैज्ञानिक आने वाले न्यूट्रिनो की दिशा का पता लगा सकते हैं और इसकी उत्पत्ति के बिंदू तक पहुँच सकते हैं. 

Thursday, December 23, 2010

अल्जाइमर पर काबू पाने की कोशिश

अल्जाइमर यानी याददाश्त खोने वाली बीमारी आज एक दुसाध्य बीमारी के रूप में जगह चुकी है। खासकर महानगरों में इसका प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है। यही कारण है कि इस पर काबू पाने के लिए लगातार शोध हो रहे हैं। इसकी एक उम्मीद है नैनो बोट मशीन। यह मशीन मनुष्य की धमनी के भीतर फिट की जाएगी जो उसकी याददाश्त को तरोताजा करती रहेगी। नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस के ऑनलाइन एडीशन में दी गई जानकारी के अनुसार मिशिगन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक उक्त मशीन को बनाने में सफल माने जा रहे हैं। विश्वविद्यालय के ऐसोसिएट प्रॉफेसर मेहमेत फतिह यानिक अपने सहयोगियों के साथ इस तकनीक पर काम कर रहे हैं। एक सव्रेक्षण के अनुसार दुनिया में 2006 में दो करोड़ साठ लाख लोग अल्जाइमर की चपेट में थे और आज यह संख्या सात करोड़ अस्सी लाख के करीब पहुंच गई है। अकेले अमेरिका में 53 लाख लोग अपनी याददाश्त खो चुके हैं। यदि समय रहते इसका माकूल इलाज नहीं ढूंढा गया तो इस संख्या में दिन-ब-दिन इजाफा होता रहेगा। इस बीमारी का प्रभाव प्रॉढ़ व्यक्तियों पर ज्यादा होता है। उम्र बढ़ने के साथ दिमाग अपनी स्मरण शक्ति पर नियंत्रण रखने में अक्षम होता जाता है जिसका विशेष कारण होता है दिमागी कसरत न करने की आदत। जो लोग लगातार दिमाग पर जोर देकर काम करते रहते हैं उनके दिमाग की कसरत होती रहती है। यानी वे दिमागी तौर पर स्वस्थ रहते हैं। दिमाग की निष्क्रियता के चलते ही अल्जाइमर धर दबोचता है। अत: दिमागी मशीन का इस्तेमाल लगातार करते रहना चाहिए। वैसे यह बीमारी किसी भी उम्र में व्यक्ति को शिकार बना सकती है लेकिन बुढ़ापे की ओर अग्रसर व्यक्ति को इसका विशेष खयाल रखने की आवश्यकता है। हाल में वैज्ञानिकों ने हवाई यात्रा करने के बाद 24 घंटे तक याददाश्त खोने जैसी समस्या का जिक्र भी किया है। यानी अधिक हवाई यात्रा करने से व्यक्ति लंबी अवधि तक इस बीमारी का शिकार हो सकता है। इसी को ध्यान में रख कर वैज्ञानिकों ने नैनो बोट मशीन का ईजाद किया है जो मानव की धमनी में फिट होकर उसकी याददाश्त को सक्रिय रखने का काम करेगी। हालांकि अभी इसे आम आदमी तक पहुंचने में समय लगेगा। अनुमान है कि कम से कम दो दशक बाद ही यह उपलब्ध हो पायेगी। इस तकनीक के सफल होने के बाद मेडिकल सांइस में बहुत से आविष्कारों की संभावनाएं बलवती हुई हैं। जैसे हड्डियों में कैल्शियम की कमी से होनेवाले आर्थराइटिस के उपचार या दुर्घटना के कारण क्षतिग्रस्त हो चुके अंगों को सही करने में भी मदद मिलेगी और तंत्रिका तंत्र की बीमारियों को भी ठीक किया जा सकेगा। इसी प्रकार मनोचिकित्सा के क्षेत्र में भी नैनो बोट कंप्यूटर बहुत सहायक सिद्ध हो सकते हैं। याददाश्त लौटाने से बुढ़ापे पर भी काबू पाया जा सकेगा। यदि सही में वैज्ञानिकों को इस तकनीक में सफलता मिलती है तो इसके बगैर मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकेगी। लेकिन अति सर्वत्रं वर्जयेतकी उक्ति को ध्यान में रखते हुए एक लक्ष्मण रेखा अवश्य खींचनी होगी और तय करना होगा कि उसे पार करना ठीक नहीं। भविष्य की इस तकनीक से न केवल गंभीर नैतिक मूल्यों के मुद्दे उठेंगे, बल्कि सुरक्षा से संबंधित मामले भी खतरे में पड़ जाएंगे। तीव्र तकनीक विकास से मनुष्य पूरी तरह तकनीकी आश्रित हो जाएगा। यह भी संभव है कि हमारे जीवन में तकनीक का अधिक हस्तक्षेप होने से हम रोबोट की तरह हो जाएं। वैज्ञानिक भी मानते रहे हैं कि कुछ नया सीखने के लिए मनुष्य को भूलना भी आवश्यक है। यांत्रिकी से हम पूरे जीवन की यादों को भंडारित कर निजी जीवन में भारी हस्तक्षेप करेंगे। बदलती जीवन शैली इस बीमारी का प्रमुख कारण माना जा सकता है। कंप्यूटर युग में हम सारा काम मशीन के माध्यम से करने के आदी हो गए हैं। छोटी-बड़ी किसी भी खरीदारी का हिसाब जोड़ने से लेकर समय और दिन तक पता करने के लिए हम यंत्रों पर आश्रित हैं। बड़ी-बड़ी गणनाओं के लिए तो कंप्यूटर या कैलकुलेटर जैसी मशीनें ठीक हैं पर सामान्य गणनाओं के लिए जहां तक हो सके, दिमागी मशीन का ही उपयोग किया जाना चाहिए। तभी हम अल्जाइमर जैसी बीमारी से बच सकते हैं। याददाश्त जिंदा रखने के लिए शरीर में मशीन फिट करने की नौबत न आए सबसे पहले यही कोशिश होनी चाहिए। प्रॉकृतिक उपचार के जरिए ही याददाश्त को लंबे समय तक जिंदा रखने का य8 होना चाहिए और इसके लिए बचपन से ही प्रयासरत रहना चाहिए। माता-पिता और अध्यापकों द्वारा बच्चों के सीखने-सिखाने की पद्धति में परिवर्तन करना होगा। बच्चों से लगातार बिना किसी मशीन के जरिये गणित का अभ्यास करवाया जाना चाहिए। हम जितनी अधिक भाषायें बोलेंगे उतनी ही अधिक दिमागी कसरत होगी और अल्जाइमर जैसी बीमारी से दूर रहेंगे। भले ही नैनो तकनीक अपना काम करती रहे लेकिन दिमागी मशीन की सक्रियता बराबर बनी रहनी जरूरी है।

पृथ्वी-2 मिसाइल के दो सफल परीक्षण

भारत ने बुधवार (22.12.2010) को परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम पृथ्वी-2 मिसाइल के दो सफल परीक्षण किए। उड़ीसा तट पर स्थित एकीकृत परीक्षण स्थल पर ये परीक्षण सेना ने एक घंटे के भीतर किए। सुबह 8:15 से 9:15 बजे के मध्य सतह से सतह पर मार करने में सक्षम इन मिसाइलों को मोबाइल लांचर से दागा गया। 350 किलोमीटर तक मार करने में सक्षम यह मिसाइल 500 से 1000 किलोग्राम भार वाले परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है। भारत द्वारा स्वनिर्मित यह मिसाइल सेना में पहले ही शामिल की जा चुकी है और बुधवार को किया गया परीक्षण सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा था। सेना की सामरिक कमान बल के प्रवक्ता के अनुसार परीक्षण पूरी तरह से सफल रहा। मिसाइल दागे जाने और उसके बाद लक्ष्य भेदने की प्रक्रिया का संवेदनशील रडारों के जरिए पूरा विश्लेषण किया गया. मिसाइल के बड़े उत्पादन से पहले ये परिक्षण किये गए, ताकि इसमें कोई कमी मिलने पर उसका सुधार किया जा सके।