Friday, April 22, 2011

अंतरिक्ष में तिरंगे की शान


भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र, इसरो ने एक बार फिर शान से अंतरिक्ष में देश का तिरंगा लहरा दिया है। इसरो के पोलर सेटेलाइट लाउंच वेहिकल, पीएसएलवी ने कामयाबी की सत्रहवीं उड़ान भरते हुए तीन सेटेलाइटों को एक साथ अंतरिक्ष की विभिन्न कक्षाओं में स्थापित कर दिया। इसके साथ ही इसरो की पिछली असफलता का वह दाग भी धुल गया जब उसके दो जीएसएलवी सेटेलाइट उड़ान भरने के साथ ही असफल होकर गिर गए थे। इस सफलता ने इसरो के उस दाग पर भी मरहम लगाने का काम किया होगा जिसमें उसके एस बैंड सेटेलाइट के लिए एक निजी कंपनी से अवैध करार ने खासा हंगामा मचाया था। इस सफलता ने पीएसएलवी की तकनीक पर श्रेष्ठता की मुहर लगा दी है और भारत अब दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है जिनके सबसे अधिक रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट अंतरिक्ष में मंडरा रहे हैं। पीएसएलवी ने अब तक अट्ठारह बार उड़ान भरी है जिसमें केवल पहली उड़ान असफल हुई है। वर्ष 1993 की इस पहली असफलता के बाद पीएसएलवी ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा है। अपनी सत्रह उड़ानों में इसने कुल 47 सेटेलाइट अंतरिक्ष में स्थापित किए हैं जिनमें 21 भारत के हैं। भारत ने अपना पहला रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट वर्ष 1988 में रूसी रॉकेट की मदद से अंतरिक्ष भेजा था। लेकिन, अब इस क्षेत्र में भारत की तकनीकी श्रेष्ठता दुनिया मान रही है। आज अमेरिका, रूस, इंग्लैंड और फ्रांस जैसे देश इसरो के साथ भागीदारी को लालायित रहते हैं। तकनीकी श्रेष्ठता और सस्ता होने के कारण दुनिया के तमाम देश इसके रॉकेट और सेटेलाइटों के लिए लाइन लगाए रहते हैं। इस बार जो तीन सेटेलाइट भेजे गए हैं उनमें एक तो सिंगापुर का है और इसके अपने मुख्य सेटेलाइट रिसोर्ससेट-2 से मिले आंकड़ों का इस्तेमाल दुनिया भर के देश करेंगे। रिसोर्ससेट-2 में लगे तीन कैमरों से फसलों का अध्ययन, पहाड़ों पर जमने वाली बर्फ के आंकड़े, ग्लेशियरों की हालत, जमीन के अंदर मौजूद जल का पता लगाना और ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों का जाल बिछाने के लिए आवश्यक आंकड़े इकट्ठे करने जैसे महत्वपूर्ण कायरे को अंजाम दिया जाएगा। आने वाले महीनों में इसरो कम्यूनिकेशन, माइक्रोवेव रिमोट सेंसिंग सेटेलाइटों की श्रृंखला छोड़ने जा रहा है। आपको याद होगा कि इसरो के चंद्रयान-1 अभियान में पहली बार चंद्रमा पर पानी होने का पता लगा था। अब चंद्रयान-2 पर जोर शोर से काम चल रहा है। रूस के साथ संयुक्त अभियान के रूप में चलने वाला यह सेटेलाइट अगले दो वर्षो में छोड़ा जाने वाला है। इसके अलावा अमेरिका ने 2016 के अपने मूनराइज अभियान में भारत से भागीदारी की इच्छा जताई है। इस अभियान में चंद्रमा से कई तरह के नमूने इकट्ठे किए जाएंगे और इसके लिए चंद्रमा तक जाने वाला सेटेलाइट भारत प्रदान करेगा। इस प्रकार भारत ने न केवल रॉकेट तकनीक में उच्च हुनर हासिल कर लिया है बल्कि इसके बनाए सेटेलाइटों की मांग भी तेजी से बढ़ रही है।

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