Thursday, April 28, 2011

जुगाली से जलेंगे चूल्हे, दौड़ेंगी गाडि़यां!


अगर यह अनुसंधान व्यावहारिक पैमानों पर खरा उतरा तो देश के डेयरी फार्मो के लाखों मवेशी दूध और मांस के उत्पादन के साथ ईधन बनाने में भी मददगार साबित होंगे। इससे वातावरण की हिफाजत होगी, सो अलग। इंदौर जिले के शासकीय पशु चिकित्सा महाविद्यालय से स्नातकोत्तर स्तर पर अनुसंधान कर रहे जुल्फकार उल हक ने मवेशियों की जुगाली के दौरान निकलने वाली मीथेन गैस को संग्रहित करके इसे तरल ईधन में बदलने की परियोजना का खाका खींचा है। उन्होंने बुधवार को बताया, मैं जिस डेयरी फार्म की परिकल्पना को आकार देने की कोशिश में जुटा हूं, उसमें मवेशियों को आहार दिए जाने के बाद उनके मुंह पर विशेष नलियां लगा दी जाएंगी। हक ने बताया कि ये नलियां पशुओं की जुगाली और डकार के दौरान निकलने वाली मीथेन गैस को जमा करेगी, जिसे एक चैंबर में पहुंचाकर तरल ईधन में बदल दिया जाएगा। मीथेन उन ग्रीनहाउस गैसों में शामिल है, जिनकी ग्लोबल वॉर्मिग बढ़ाने में अहम भूमिका मानी जाती है। हक ने कहा, तरल मीथेन को ईधन के रूप में वाहनों और खाना पकाने में इस्तेमाल किया जा सकता है। चूंकि देश में मवेशियों की आबादी दुनिया के दूसरे मुल्कों के मुकाबले बेहद ज्यादा है। लिहाजा, इस तरह की परियोजना से ग्लोबल वॉर्मिग पर नियंत्रण में भी मदद मिलेगी। हक ने बताया कि एक अनुमान है कि जुगाली करने वाला मवेशी आमतौर पर दिन भर में 250 से 500 लीटर मीथेन वातावरण में छोड़ सकता है। लिहाजा इस बारे में अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय खासा चिंतित है। उन्होंने बताया कि उनकी परिकल्पना को इंडियन एसोसिएशन फॉर द एडवांसमेंट ऑफ वेटरनरी रिसर्च (आइएएवीआर) के जयपुर में फरवरी के दौरान राष्ट्रीय अधिवेशन में सर्वश्रेष्ठ नवाचारी विचार के रूप में पुरस्कृत किया जा चुका है। युवा अनुसंधानकर्ता इन दिनों अपनी परिकल्पना को परिष्कृत और व्यावहारिक रूप देने में जुटा है|

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