Wednesday, April 6, 2011

जीवन का चौथा रूप खोजा!


 धरती पर लंबे समय से जीवन के चौथे रूप के अस्तित्व को लेकर जीव विज्ञानियों के बीच बहस चल रही है। अब जाकर अमेरिकी वैज्ञानिकों को धरती पर जीवन के चौथे रूप की मौजूदगी के ठोस प्रमाण मिले हैं। उल्लेखनीय है कि धरती पर जीवों को अभी तीन रूप में विभाजित किया गया है। पहले जटिल शारीरिक रचना वाले जानवर, मनुष्य, पेड़-पौधे, दूसरे बैक्टीरिया और तीसरे आर्किया हैं। इनमें आखिरी दो सूक्ष्मजीवियों में आते हैं। अब कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में जीवविज्ञान के प्रोफेसर जोनाथन ईसेन ने दावा किया कि उन्होंने चौथी श्रेणी को खोज लिया है। उन्होंने अपने साथी शोधकर्ता डॉ. क्रेग वेंटर द्वारा दुनिया के दौरे पर इकट्ठे किए गए डीएनए के अध्ययन के लिए जटिल जीन संरचना तकनीकी का इस्तेमाल किया। उन्होंने पाया कि डीएनए के इन नमूनों में मौजूद जीन जीवन के मौजूदा तीनों रूपों में से किसी से मेल नहीं खाते। उनका कहना है कि ये जीन किसी चौथे जीव के हो सकते हैं। नए डीएनए को जीवन के किसी भी वर्ग में डालने के प्रयास में असफल साबित होने पर प्रोफेसर ईसेन ने अपने तथ्यों को पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ साइंस पत्रिका में प्रकाशित किया है, ताकि अन्य वैज्ञानिक अपनी जानकारियों के साथ इस काम में मदद के लिए आगे आएं। सवाल यह है कि ये डीएनए कहां से आए? क्या ये किसी अलग प्रकार के वायरस से ताल्लुक रखते हैं? अगर ऐसा है तो जीवन के चौथे रूप का अस्तित्व अपने आप में काफी रोचक है। सबसे बड़ी बात यह है कि ये जीवन वृक्ष की एकदम नई शाखा का का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। प्रोफसर ईसेन के हवाले से द डेली टेलीग्राफ ने लिखा है, हालंाकि अभी तक हमें इसके पीछे की पूरी कहानी मालूम नहीं पड़ी है। आखिर में हमने तय किया कि इस अध्ययन को प्रकाशित कराया जाए ताकि अन्य लोग भी इस मामले पर विचार कर सकें। इन नए जीन का अध्ययन करने में कठिनाई इनके अल्प मात्रा में उपलब्ध होने के कारण आ रही है। मगर डॉ. वेंटर के तरीके का इस्तेमाल कर ईसेन ने मानव जनेटिक कोड को पढ़ने का सफल प्रयास किया। उन्होंने इस तकनीक को मेटाजीनोमिक्स नाम दिया है। इसके तहत डीएनए को टुकड़ों में विभाजित कर दिया जाता है और उनको डिकोड कर लिया जाता है। इसके पश्चात इन्हें सही क्रम में फिर से व्यवस्थित कर दिया जाता है। सस्ते और शक्तिशाली कंप्यूटरों के कारण विज्ञान को बड़ा फायदा पहुंचा है। डॉ. वेंटर द्वारा 2003 से 2007 के बीच दुनियाभर के समुद्रों से एकत्रित किए नमूनों पर शोधदल ने अपनी तकनीक को इस्तेमाल किया। प्रोफेसर ईसेन आरईसी ए और आरपीओ बी नामक दो जीनों पर अटक गए। ये दोनों पुराने और प्रचूर मात्रा में थे जिनकी विशेषताएं सार्वजनिक जनेटिक डाटाबेस से बिल्कुल अलग थीं। इस खोज के वर्गीकरण के लिए शोध जारी है मगर समस्या यह है कि यह जानकारी नहीं है कि ये जीन आखिर आए कहां से। इन्हें सामान्य तौर पर लिए गए समुद्री जल के नमूनों से हासिल किया गया है|

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