Monday, February 7, 2011

श्रीयंत्र से जुड़े प्राचीन विज्ञान को दस्तावेज की शक्ल


मानव सभ्यताओं और मनुष्य की गतिविधियों के उतार-चढ़ाव का आंकलन करने वाली ज्यामिति की सार्वभौमिक प्रणाली को समाहित करने वाली एंथ्रो-बायोमेट्री (मानव जीवमिती) के प्राचीन विज्ञान को एक भारतीय ने सफलतापूर्वक दस्तावेज का रूप दिया है। इसके उदाहरणों में हिंदू श्रीयंत्र भी है। वर्ष 1997 में पिरामिड के रहस्य को सुलझाने वाले चेन्नई निवासी आरकेएस मुथुकृष्णन ने एंथ्रो-बायोमेट्रीपर एक नई किताब तैयार की है। इस प्राचीन विज्ञान का प्रतिपादन दरअसल दक्षिण भारतीयों ने किया था, जिन्होंने योग से परे जाकर चमत्कारिक शक्तियों को पाने की दिशा में काम किया। नई पुस्तक का शीर्षक द इजिप्शियन कोड-ए सीक्रेट कोड ऑफ द फेरोज दैट कैन टर्न स्माल बिजनेसस इनटू अंपायर्स है जो इस प्राचीन विज्ञान की गूढ़ता को विस्तार से बयां करता है। मुथुकृष्णन ने बताया कि मिस्र के फेराओ (राजाओं) ने अपने स्वर्ण काल में इस विज्ञान का व्यापक इस्तेमाल किया। उन्होंने पिरामिड बनाने में और खासतौर पर गीजा के ग्रेट पिरामिड में इसका उपयोग किया। लेखक का कहना है कि इस ज्यामिति विज्ञान की सार्वभौमिक अवधारणा का इस्तेमाल आज भी कुछ संस्कृतियों में उनके धार्मिक चिह्नों के माध्यम से होता देखा जा सकता है। मसलन हिंदू श्रीयंत्र व यहूदी पेंटाग्राम या स्टार ऑफ डेविड आदि में। आजकल तांबे की परतों पर बनाए गए यह श्रीयंत्र मंदिरों में मूर्तियों के पास देखे जाते हैं। विजयनगर साम्राज्य के समय तेलुगू भाषी कबायली जाति कंबलथू नायकर के वंशज मुथुकृष्णन ने कहा कि कंबलथू नायकरों को तांत्रिक योद्धाओं के रूप में जाना जाता है जो विजयनगर साम्राज्य के युद्ध में इस विज्ञान के जरिए लौकिक शक्तियों के आह्वान के लिए एंथ्रो बायोमेट्री का इस्तेमाल करते थे।


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