Saturday, January 15, 2011

विज्ञान और विकास की अनोखी राहें

नोबेल पुरस्कार विजेता वेंकी ने कुछ शब्दों में ही विज्ञान का सार समझा दिया। उनकी मान्यता है कि हम सब जन्मजात वैज्ञानिक हैं, लेकिन जैसे- जैसे बड़े होते हैं, हम वैज्ञानिक बनना भूल जाते हैं। बालक- पेड़-पौधों, कीड़े-मकोड़े, नीले आकाश और लाल सूरज के बारे में उत्सुक रहते हैं। बच्चों द्वारा पूछे गए सवालों पर माता-पिता उन्हें टरका देते हैं। यह ठीक नहीं है। जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हम नीले आकाश को देखते रहते हैं और प्रश्न करने से कतराते हैं
आप सब घर लौट आइये, देश को आपकी जरूरत है- यह संदेश प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने चेन्नई में 98वीं विज्ञान कांग्रेस का उद्घाटन करते हुए दिया। वे चाहते हैं कि युवा वैज्ञानिक देश लौटकर यहां के तकनीकी विकास और नए-नए कौशल में हाथ बंटाए। यहां अनेक सुविधाएं और अनुसंधान के साधन हैं। हमारे विविद्यालय विदेशों में अध्ययन कर रहे युवा वैज्ञानिकों के लिए अपने द्वार खोल सकते हैं, ताकि वे अपने यहां रिसर्च करियर शुरू कर सकें। अब समय आ गया है, जब भारतीय विज्ञान और टेक्नोलॉजी कुछ ऊंचा सोचे और समय से आगे बढ़े। अब समय आ गया है कि हम 21वीं शताब्दी के रामानुजन और रामन पैदा कर सकते हैं। विज्ञान कांग्रेस अपने शताब्दी वर्ष (2012-2013) में वैज्ञानिक शोधकर्ताओं में एकदम नया प्रोफाइल ला सकती है, जिससे देश का नक्शा ही बदल जाए और नए अवसर पैदा किए जा सकें। प्रधानमंत्री चाहते हैं कि देश में विज्ञान जो अब तक नहीं कर पाया है वह करके दिखाए। हमारे अनुसंधान से नए-नए प्रोडक्ट बनाए जा सकते हैं। हमारे इनोवेशन से ऐसी चीजें बनाई जा सकती हैं, जो बाजारों में बिक सकें और यहां तक कि हम इनका निर्यात कर सकें। सर सीवी रामन के आविष्कार 80 वर्ष बाद भी हमारे
इस्तेमाल में आ रहे हैं, और हम नई चीजें बनाए जा रहे हैं। हमारे प्रवासी वैज्ञानिक नई तकनीकों और आविष्कारों पर काम कर सकते हैं। वे विज्ञान और विकास की नई राहें खोल सकते हैं। ऐसी बात नहीं है कि भारत में विज्ञान की प्रगति के लिए अब तक कोई प्रयत्न नहीं किए गए हैं। 10 से 27 वर्ष के साढ़े तीन लाख से ज्यादा छात्रों को विज्ञान की पढ़ाई आगे बढ़ाने के लिए छात्रवृत्ति दी गई है। विज्ञानमंत्री कपिल सिब्बल ने घोषणा की है कि विदेश के बड़े से बड़े विविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों की तर्ज पर जल्द ही भारत के पास नवरत्न विविद्यालय होंगे जो सरकार के नियंतण्रसे मुक्त होंगे। केंद्रीय सरकार आधुनिक तथा विज्ञान टेक्नोलॉजी के नए-नए अंगों को आगे बढ़ाने के लिए एक वैज्ञानिक तथा इनोवेटिव रिसर्च एकेडमी स्थापित करेगी। देखना यह पड़ेगा कि नई-नई प्रयोगशालाएं और एकेडमी स्थापित होने से कहीं हमारी पहले की प्रयोगशालाएं अपना काम ठीक से न कर पाएं। उनका कोई महत्व ही न रहे। इसलिए नई-पुरानी प्रयोगशालाओं और संस्थानों में तालमेल बैठाना जरूरी है। नोबेल पुरस्कार विजेता अमत्र्य सेन का विज्ञान कांग्रेस में यह विचार सबसे सराहा गया कि ज्ञान और सद्भावना के लिए यह जरूरी है कि प्राचीन नालंदा विविद्यालय को पुनर्जीवित किया जाए। नालंदा की स्थापना बिहार में पांचवीं शताब्दी में की गई थी और यह 12वीं शताब्दी तक रहा, लेकिन इसे 1193 में हमलावरों ने नष्ट कर दिया गया। अब हम इसे पुनस्र्थापित करने के लिए चीन, सिंगापुर, और जापान सहायता दे रहे हैं। डॉ. सेन नालंदा विविद्यालय के बोर्ड के अध्यक्ष है। डॉ. अमत्र्य सेन विज्ञान कांग्रेस में नालंदा और विज्ञान शोध व अध्ययन पर भाषण दे रहे थे। उन्होंने बताया कि नालंदा का उद्देश्य ज्ञान और सद्भावना को बढ़ावा देना था। पूर्व में यहां 10 हजार छात्र और शोधकर्ता रहते थे। यहां धर्म और विज्ञान का अद्भुत मिशण्रथा। विज्ञान कांग्रेस में आए वैज्ञानिकों और नोबेल पुरस्कार विजेताओं में प्रसिद्ध रसायनिक वेंकी रामकृष्ण भी थे, जिन्हें 2008 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। जब उन्हें विज्ञान कांग्रेस का स्वर्ण पदक प्रधानमंत्री ने दिया तो हषर्ध्वनि और तालियों से सारा वातावरण गूंज गया। बाल विज्ञान कांग्रेस का उद्घाटन करते हुए वेंकी ने छात्रों से बड़े प्यार से बातचीत की। पहले दो दिन तक वे मूवी स्टार्स की तरह भीड़ से घिरे रहे और उनका फोटो लेने के लिए सब उतावले हो गए। इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए डा. रामकृष्णन ने कहा कि वैज्ञानिक कोई फिल्म स्टार नहीं है। वे केवल वैज्ञानिक हैं, जो प्रयोगशालाओं में काम करते हैं। उन्हें मूवी और क्रिकेट स्टारों की तरह न समझा जाए। सबका अलग- अलग काम है। उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि मैं किसी भी जगह 15 मिनट बोलता हूं और मेरा शेष समय समारोह की कार्रवाई में चला जाता है। विज्ञान, जिज्ञासा, टेस्टिंग और प्रयोगों से संबंधित है और वैज्ञानिक होने के नाते मैं ज्ञान का भंडार भर रहा हूं, न कि भारत के लिए क्रिकेट खेल रहा हूं। विज्ञान एक वि उद्यम है, जहां संसार के एक भाग में होने वाली खोजों का लाभ अन्य भागों में उठाया जाता है। यह ट्रैफिक दोतरफा होना चाहिए क्योंकि इस समय केवल पश्चिम से वैज्ञानिक बहाव भारत की ओर ज्यादा है। भारत को विज्ञान में आत्म-भरित होना चाहिए। छात्रों से उन्होंने कहा- मैं आपके साथ ईमानदार हूं। आप मुझसे असहमत होने के लिए स्वतंत्र है। यही विज्ञान है।
इस प्रकार वेंकी ने कुछ शब्दों में ही विज्ञान का सार समझा दिया। उनकी मान्यता थी कि हम सब जन्मजात वैज्ञानिक हैं, लेकिन जैसे-जैसे बड़े होते हैं, हम वैज्ञानिक बनना भूल जाते हैं। बालक- पेड़-पौधों, कीड़े-मकोड़े, नीले आकाश और लाल सूरज के बारे में उत्सुक रहते हैं। वे माता पिता से कुछ पूछते हैं तो वे बच्चों को टरका देते हैं। यह ठीक नहीं है। जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हम नीले आकाश को देखते रहते हैं और प्रश्न करने से कतराते हैं। जलवायु परिवर्तन से सब देशों को चिंता है और इससे कृषि पर भी दुष्प्रभाव पड़ रहा है। विज्ञान कांग्रेस में कृषि विशेषज्ञ डॉ. एम एस स्वामीनाथन ने बताया कि हम इससे कैसे बच सकते हैं। हमारी कृषि मानसून पर निर्भर रहती है, इसलिए हमें अपनी कृषि पण्राली उसी के अनुसार ढालनी होगी। मानसून के उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखना होगा। प्राचीन समय में जब सिंचाई नहीं थी, किसान बाढ़ और सूखा का सामना करने के लिए तैयार रहते थे। उस समय जलवायु-अनुकूल खेती होती थी और मिश्रित फसल उगाते थे। हमें चाहिए कि हम अपने प्राचीन और देशी कृषि ज्ञान के दस्तावेज तैयार करें, जिससे वे हमारे काम आ सके। यह अच्छा है कि देश में फसलों और मौसम पर आधारित 127 कृषि जलवायु क्षेत्रों की पहचान की गई है। इसलिए हमें अपनी कृषि पण्राली उसी के अनुसार ढालने के प्रयत्न तेज करने होंगे। हम हर क्षेत्र में जलवायु जोखिम प्रबंधन शोध एवं प्रशिक्षण केंद्र स्थापित कर सकते हैं। ये केन्द्र वैकल्पिक फसलीकरण नीतियां और प्रतिकूल परिस्थितियों को रोकने की विधियां विकसित कर सकते हैं। जलवायु परिवर्तन का जिक्र करते हुए केंद्रीय नियंतण्रबोर्ड के अध्यक्ष डा. गौतम ने कहा कि जो रसायन नुकसान पहुंचाते हैं, उनका इस्तेमाल हमें नहीं करना चाहिए। हमारे यहां इलेक्ट्रॉनिक और प्लास्टिक कचरा एक बड़ी समस्या बनते जा रहे हैं, जिसका समाधान हम नहीं कर पा रहे। देश में प्रतिवर्ष चार लाख टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा हो रहा है, और हम केवल 83 हजार टन का निपटान कर पा रहे हैं। यही हाल प्लास्टिक कचरे का है। भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान में अब तक अच्छी प्रगति की है, और इसका लाभ हम दूसरे देशों को भी दे रहे हैं। लघु उपग्रह केंद्र के निर्देशक डा. एलेक्स ने कहा कि छोटे उपग्रहों से हमें बहुत कुछ लाभ हो सकते हैं। ये उपग्रह संचार, मौसम और कृषि विज्ञान में बहुत उपयोगी हैं, इसलिए हमें इनका विकास करना चाहिए। पिछले 30 वर्ष में कम वजन के एक हजार से ज्यादा उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे गए हैं। इनसे महत्वपूर्ण सूचनाएं मिली हैं। एक कॉलेज के छात्रों ने ऐसा ही एक लघु उपग्रह बनाया है। भारतीय वैज्ञानिकों का एक दल भूकम्प अध्ययन के लिए महाराष्ट्र के कोयना क्षेत्र में जमीन से 8 किलोमीटर नीचे एक छोटी प्रयोगशाला स्थापित करेगा। भूकम्प की दृष्टि से यह क्षेत्र संवेदनशील है। यहां 20 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में भूकम्प आते रहते हैं। नई प्रयोगशाला से ज्ञान होगा कि भूकम्प आने से पहले और उसके दौरान क्या होता है। यह अच्छा है कि कोयना क्षेत्र में हाल में कोई बड़ा भूकम्प नहीं आया है। इस वर्ष विज्ञान कांग्रेस में एक नए उत्साह की झलक देखी गई। आगे की अनेक तैयारियां की गई हैं और प्रस्तावित योजनाओं को अमल में लाने के प्रयत्न होंगे। सफलता ही सबकी कुंजी है।

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